घर पर उद्धरण
महज़ चहारदीवारी को ही
घर नहीं कहते हैं। दरअस्ल, घर एक ‘इमोशन’ (भाव) है। यहाँ प्रस्तुत है—इस जज़्बे से जुड़ी हिंदी कविताओं का सबसे बड़ा चयन।

जब कोई अतिथि घर पर आता है तो मैं उससे कह देता हूँ, "यह तुम्हारा ही घर है"।

आदर्श अतिथि होने के लिए, घर पर ही रहो।

सच्ची मित्रता के नियम इस सूत्र में अभिव्यक्त हैं- आने वाले अतिथि का स्वागत करो और जाने वाले अतिथि को जल्दी विदा करो।

स्त्री ही व्यक्ति को बनाती है, घर को—कुटुंब को बनाती है, जाति और देश को भी।

कितनी ही बार मैं घर के बारे में सोचते हुए, बारिश में किसी अजनबी छत पर सो चुका हूँ।

शायद घर कोई जगह नहीं है, बल्कि अपरिवर्तनीय स्थिति है।

कोशिश करो कि कभी अपने घर के बाहर शराब के नशे में धुत्त न मिलो।

स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी कही गई हैं। ये अत्यंत सौभाग्यशालिनी, आदर के योग्य, पवित्र तथा घर की शोभा हैं, अत: उनकी विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए।

आपके पास तब तक कोई घर नहीं है, जब तक आप उसे छोड़ नहीं देते हैं और फिर जब आप उसे छोड़ देते हैं, तो आप कभी वापस नहीं जा सकते हैं।

मेरा घर भी वहीं है जहाँ पीड़ा का निवास है। जहाँ-जहाँ दुःख विद्यमान है वहाँ-वहाँ मैं विचरता हूँ।

घर की दीवारों में स्त्री को मर्यादित रखना किस काम का? वास्तविक मर्यादा तो उसका सतीत्व ही है।

पुरुषों को देखकर उसके पास धरोहर रखी जाती है, घरों को देखकर नहीं।

यह घर संसार जितना बड़ा है या यूँ कहें कि यही संसार है।

प्राय: लोगों के लिए समय एक किराये का घर है।

सुनो, पड़ोस के मकान में एक बेहतर सृष्टि का नर्क है, चलो चलें।

साहसिक काम तब शुरू होता है, जब मैं अपने घर से बाहर निकलती हूँ।

मुझे कई बार लगता है कि पेड़ शायद आदमी का पहला घर है।

अकेला दूसरे के घर में प्रवेश करे, द्वितीय आदमी से मंत्रणा करे, बहुत आदमी लेकर युद्ध करे, यही शास्त्र का निर्णय है।

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

पुरुष क्यों अपने घर की स्त्रियों को गुड़िया बनाते हैं?

घर व गृहस्थी का मूल उद्देश्य ही आतिथ्य व परोपकार है।

ख़त निजी अख़बार है घर का।

मेरे पूर्वजों से परंपरा प्राप्त मेरा पातिव्रत्य हमारे घर का रत्न है।

जो पुत्रहीन है उसका घर सूना प्रतीत होता है। जिसका हार्दिक मित्र नहीं है उसका घर सदा से सूना है। मूर्खों के लिए दसों दिशाएँ सूनी हैं। निर्धन के लिए तो सब कुछ सूना है।

ठहरना चाहते अतिथि को जल्दी विदा कर देना और विदा चाहते अतिथि को रोक लेना समान रूप से आपत्तिजनक होते हैं।

एक बार जब दुर्भाग्य किसी घर में प्रवेश कर जाता है, तो शांति भंग हो जाती है।

जिसके घर से अतिथि असम्मानित होकर दीर्घश्वास छोड़ता हुआ चला जाता है, उसके घर से पितरों सहित देवता विमुख होकर चले जाते हैं।

घर का दरवाज़ा खोलते ही मैंने घर को ऐसे देखा जैसे किसी ख़ाली डब्बे के ढक्कन को खोलकर अंदर झाँक रहा हूँ। अगर ख़ालीपन मभी कोई चीज़ थी, तो उसी घर ठसाठस भरा था। इसके अलावा कुछ नहीं था। घर के अंदर मैं उसी तरह आया, जैसे एक उपराहा ख़ालीपन और आया है।

घर बदलने और नौकरी बदलने के बदले ख़ुद को बदलना चाहिए।
