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घर पर उद्धरण

महज़ चहारदीवारी को ही

घर नहीं कहते हैं। दरअस्ल, घर एक ‘इमोशन’ (भाव) है। यहाँ प्रस्तुत है—इस जज़्बे से जुड़ी हिंदी कविताओं का सबसे बड़ा चयन।

कितनी ही बार मैं घर के बारे में सोचते हुए, बारिश में किसी अजनबी छत पर सो चुका हूँ।

विलियम फॉकनर

कोशिश करो कि कभी अपने घर के बाहर शराब के नशे में धुत्त मिलो।

जैक कैरुआक

मुझे कई बार लगता है कि पेड़ शायद आदमी का पहला घर है।

केदारनाथ सिंह
  • संबंधित विषय : पेड़

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

श्रीकांत वर्मा

एक बार जब दुर्भाग्य किसी घर में प्रवेश कर जाता है, तो शांति भंग हो जाती है।

मौरिस मैटरलिंक

जिसके घर से अतिथि असम्मानित होकर दीर्घश्वास छोड़ता हुआ चला जाता है, उसके घर से पितरों सहित देवता विमुख होकर चले जाते हैं।

विष्णु शर्मा

घर का दरवाज़ा खोलते ही मैंने घर को ऐसे देखा जैसे किसी ख़ाली डब्बे के ढक्कन को खोलकर अंदर झाँक रहा हूँ। अगर ख़ालीपन मभी कोई चीज़ थी, तो उसी घर ठसाठस भरा था। इसके अलावा कुछ नहीं था। घर के अंदर मैं उसी तरह आया, जैसे एक उपराहा ख़ालीपन और आया है।

विनोद कुमार शुक्ल

घर बदलने और नौकरी बदलने के बदले ख़ुद को बदलना चाहिए।

विनोद कुमार शुक्ल