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पुरुष पर उद्धरण

मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं।

हरिशंकर परसाई

छोटा आदमी हमेशा भीड़ से कतराता है। एक तो उसे अपने वैशिष्ट्य के लोप हो जाने का डर बना रहता है, दूसरे कुचल जाने का।

हरिशंकर परसाई

बहुत कम महिलाएं सही पुरुष का इंतजार करती हैं। ज्यादातर महिलाएँ पहले मिले और सबसे ख़राब पुरुष का चुनाव कर लेती हैं।

एल्फ्रीडे येलिनेक

आदमी को समझने के लिए सामने से नहीं, कोण से देखना चाहिए। आदमी कोण से ही समझ में आता है।

हरिशंकर परसाई

मैं पुरुषों के ख़िलाफ़ नहीं लड़ती, बल्कि उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ती हूँ जो सेक्सिस्ट है।

एल्फ्रीडे येलिनेक

ग़रीब आदमी तो ऐलोपैथी से अच्छा होता है, होमियोपैथी से, उसे तो ‘‘सिम्पैथी’’ (सहानुभूति) चहिए।

हरिशंकर परसाई

जिसकी बात के एक से अधिक अर्थ निकलें वह संत नहीं होता, लुच्चा आदमी होता है। संत की बात सीधी और स्पष्ट होती है और उसका एक ही अर्थ निकलता है।

हरिशंकर परसाई

आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हूँ। पर सच्चे कुत्ते से बहुत डरता हूँ।

हरिशंकर परसाई

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