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पानी पर उद्धरण

पानी या जल जीवन के अस्तित्व

से जुड़ा द्रव है। यह पाँच मूल तत्त्वों में से एक है। प्रस्तुत चयन में संकलित कविताओं में जल के विभिन्न भावों की प्रमुखता से अभिव्यक्ति हुई है।

जल विप्लव है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं।

रघुवीर सहाय

पानी का स्वरूप ही शीतल है।

रघुवीर सहाय

पानी एक ऐसी चीज़ है जिसे बहुत देर तक बिना बोले भी देखा जा सकता है।

सिद्धेश्वर सिंह

वाष्पीकरण एक सहज क्रिया है। यह सिर्फ़ द्रवों पर ही लागू हो ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं।

सिद्धेश्वर सिंह

जैसे शुद्ध पानी में सोने और चांदी का वजन होता है, वैसे ही आत्मा मौन में अपना वजन परखती है, और हम जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं हमारे जो उनका कोई अर्थ नहीं होता उस मौन के सिवा जो उन्हें घेरे रहता है।

मौरिस मैटरलिंक

मेघ के जल के समान दूसरा जल नहीं। आत्म-जल के समान दूसरा बल नहीं। चक्षु के समान दूसरा तेज़ नहीं। अन्न के समान कोई प्रिय नहीं।

चाणक्य

जल समस्त प्रकृति की प्रेरक शक्ति है।

लियोनार्डो दा विंची

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