आकाश पर कविताएँ

आकाश का अर्थ है आसमान,

नभ, शून्य, व्योम। यह ऊँचाई, विशालता, अनंत विस्तार का प्रतीक है। भारतीय धार्मिक मान्यता में यह सृष्टि के पाँच मूल तत्वों में से एक है। पृथ्वी की इहलौकिक सत्ता में आकाश पारलौकिक सत्ता के प्रतीक रूप में उपस्थित है। आकाश आदिम काल से ही मानवीय जिज्ञासा का विषय रहा है और काव्य-चेतना में अपने विविध रूपों और बिंबों में अवतरित होता रहा है।

प्रेमपत्र

सुधांशु फ़िरदौस

उड़ते हुए

वेणु गोपाल

पतंग

संजय चतुर्वेदी

उड़ानें

आलोकधन्वा

पहाड़ पर चढ़ने के लिए

पद्मजा घोरपड़े

एक कहानी आसमान की

प्रमोद पाठक

‘हूँ’ गीत

प्रकाश

चंपई आकाश

केदारनाथ अग्रवाल

आकाश

राधावल्लभ त्रिपाठी

आकाश

गोविंद द्विवेदी

कल्पना

हेमंत देवलेकर

बगुलों के पंख

उमाशंकर जोशी

क्वार में बारिश

श्रुति गौतम

प्यार में चिड़िया

कुलदीप कुमार

जब बड़ा बनूँगा

खेमकरण ‘सोमन’

नील-व्योम-सागर

लनचेनबा मीतै

संबंध

शैलेय

आसमान की तरफ़ देखता हूँ

राघवेंद्र शुक्ल

इतना लंबा आकाश

राजेंद्र यादव

जिस तरह वृहद आकाश

पूनम अरोड़ा

आसमान के पार

योगेंद्र गौतम

आसमान

मीनाक्षी जिजीविषा

अब तो

मुकुंद लाठ

आधे आकाश में

अमेय कांत

लौट आता है आसमान

मोना गुलाटी

डूब रही भद्रा

चंचला पाठक

टूटे सात रंग

अमृत रंजन

आकाश और आँख

प्रेमशंकर शुक्ल

आकाश

एकांत श्रीवास्तव

तिनका

मुकुंद लाठ

पाँच चिड़ियों ने

ज्ञानेंद्रपति

चुप्पी

प्रेमा झा

आसमान ख़ुद

भवानीप्रसाद मिश्र

दिन के निकलते ही

सौम्या सुमन

आसमानों को

कुमार मुकुल

मनु का आसमान

शरद बिलाैरे

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