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शाम पर कविताएँ

दिन और रात के बीच के

समय के रूप में शाम मानवीय गतिविधियों का एक विशिष्ट वितान है और इस रूप में शाम मन पर विशेष असर भी रखती है। शाम की अभिव्यक्ति कविताओं में होती रही है। यहाँ प्रस्तुत चयन में शाम, साँझ या संध्या को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

एक प्रश्न

सौरभ अनंत

संध्या के बाद

सुमित्रानंदन पंत

आषाढ़ की साँझ

बाबुषा कोहली

गर्मियों की शाम

विष्णु खरे

लौट आ, ओ धार

शमशेर बहादुर सिंह

मनवांछित

जितेंद्र कुमार

वसंत की शामें

संजीव मिश्र

साँझ

बा. भ. बोरकर

संध्या

श्री अरविंद

कल शाम

जितेंद्र कुमार

शाम के नज़दीक

जितेंद्र कुमार

ऐसे इन प्रसंगों में

पंकज चतुर्वेदी

शाम

जितेंद्र कुमार

जाड़े की शाम

धर्मवीर भारती

सायं संध्या

के.वी. रमणा रेड्डी

एक शाम वृंदावन

प्रियदर्शन

पहाड़ की शाम

पवन चौहान

एक पीली शाम

शमशेर बहादुर सिंह

एक शाम

अशोक कुमार पांडेय

साँझ

शुभम् आमेटा

शाम का साथी

सुधांशु फ़िरदौस

न बीत रहे पल से

पारुल पुखराज

घर में आँगन था

अखिलेश जायसवाल

केन के पुल पर शाम

केशव तिवारी

जाड़े की साँझ

अलेक्सांद्र पूश्किन

शाम

अच्युतानंद मिश्र

एक मनःस्थिति

शैलप्रिया

नदी-तट, साँझ और मेरा प्रश्न

प्रयागनारायण त्रिपाठी

फिर

वंदना शुक्ल

फागुनी शाम

नामवर सिंह

उस शाम

तरुण भटनागर

ये उदासी-भरी शाम

मंगेश पाडगाँवकर

पथ में साँझ

नामवर सिंह

प्रतिध्वनि

अरुण देव

हमारे गाँव की शाम

प्रेमशंकर शुक्ल

अगली साँझ

अरमान आनंद

जब शाम ढ़लती है

सौम्या सुमन

शाम

आकांक्षा

आभास

कन्हैयालाल सेठिया

साँझ

पवन चौहान

ट्रैफ़िक जाम

स्वाति शर्मा

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