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शाम पर गीत

दिन और रात के बीच के

समय के रूप में शाम मानवीय गतिविधियों का एक विशिष्ट वितान है और इस रूप में शाम मन पर विशेष असर भी रखती है। शाम की अभिव्यक्ति कविताओं में होती रही है। यहाँ प्रस्तुत चयन में शाम, साँझ या संध्या को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

भोर से हो गई शाम

अन्नू रिज़वी

अगहन

देवेंद्र कुमार बंगाली

फिर नदी अचानक सिहर उठी

विनोद श्रीवास्तव

संध्याएँ

देवेंद्र कुमार बंगाली

शाम

देवेंद्र कुमार बंगाली

शामें, अच्छी हों

देवेंद्र कुमार बंगाली