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स्वप्न पर कविताएँ

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

प्रेम के आस-पास

अमर दलपुरा

एक दिन

सारुल बागला

यह उस रात की कहानी है

प्रदीप अवस्थी

ग्रामीण प्रणय गीत

एमिलियो वास्केज़

बुरे समय में नींद

रामाज्ञा शशिधर

मनुष्य का रास्ता

एनरीक़ पेना बैरीनिशिया

पहले

निशांत कौशिक

ईश्वर का मुखपत्र

लुइस मुनोज़ मारिन

एक रात द्वीप पर

पाब्लो नेरूदा

लड़के सिर्फ़ जंगली

निखिल आनंद गिरि

बड़बड़

नाज़िश अंसारी

सपने

पाश

नींद

गुंटर कुनेर्ट

एक आत्मा का रेशम

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

क़ैदख़ाना

अशरफ़ अबूल-याज़िद

बिल्ला

होर्खे लुइस बोर्खेस

दुपहर में सपना

पेत्रे बाकेव्स्की

बादल (1931)

एल्वी सिनेर्वो

कभी न लौटेंगे वे सपने

अलेक्सांद्र ब्लोक

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

कुछ कविताएँ

ओना नो कोमाची

डचेस की बिल्लियाँ

राफ़ाएल मेंदेज़ दोरिख़

नए वर्ष की रात

गाब्रियल ओकारा

पेड़ का सपना

चाङ् ह्यान जाङ्

सपना और दीवार

लैंग्स्टन ह्यूज़

एक सपना

हंस माग्नुस एन्त्सेंसबर्गर

निशा-गुलाब

राफ़ाएल सोलाना

जलते पक्षी का गीत

माक्ती रोस्सी

परिचय

वास्को पोपा

तुम

बेबी शॉ

शरद का एक दिन

एल्वी सिनेर्वो

इनसोम्निया

प्रदीप अवस्थी

भागने का एक सपना

ली मिन-युंग

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