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स्वप्न पर ग़ज़लें

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

हमारी ख़्वाहिश

रामप्रसाद बिस्मिल

साध-सपना हिया

ए. कुमार ‘आँसू’

आदमीयत के धरम

ए. कुमार ‘आँसू’

नैनन से आँसू

ए. कुमार ‘आँसू’

ज़िंदगी

नवल बिश्नोई

फूल भी क्या खिले हैं

डॉ. वेद मित्र शुक्ल