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दर्पण पर उद्धरण

दर्पण, आरसी या आईना

यों तो प्रतिबिंब दिखाने वाला एक उपयोगी सामान भर है, लेकिन काव्यात्मक अभिव्यक्ति में उसका यही गुण विशेष उपयोगिता ग्रहण कर लेता है। भाषा ने आईने के साथ आत्म-संधान के ज़रूरी मुहावरे तक गढ़े हैं। इस चयन में प्रस्तुत है दर्पण को महत्त्व से बरतती कुछ कविताओं का संकलन।

चलते हुए, पानी की तरह बनो। स्थिर हो, तो दर्पण की तरह बनो। प्रतिध्वनि की तरह उत्तर दो।

ब्रूस ली

दर्पण में उसकी छवि को देख कर एक ख़ूबसूरत महिला पूरी तरह से मान सकती है कि छवि उसकी ही है। एक बदसूरत महिला जानती है कि ऐसा नहीं है।

सिमोन वेल

कला हमारे विश्वासघाती आदर्शों का दर्पण है।

डोरिस लेसिंग
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कुरूप व्यक्ति जब तक दर्पण में अपना मुँह नहीं देख लेता, तब तक वह अपने को दूसरों से अधिक रूपवान समझता है।

वेदव्यास

शब्द—विचार का भोजन, शरीर, दर्पण और ध्वनि हैं। क्या अब आप उन शब्दों के ख़तरे को देखते हैं जो बाहर आना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने में असमर्थ हैं?

न्गुगी वा थ्योंगो

प्रत्येक व्यक्ति एक दर्पण है। सुबह से साँझ तक इस दर्पण पर धूल जमती है और जो इस धूल को जमते ही जाने देते हैं, वे दर्पण नहीं रह जाते।

ओशो

जो सहृदयता दर्पण में अपना मुख निरखती है, पत्थर बन जाती है। और सत्क्रिया जो अपने को सुंदर नामों से संबोधित करती है, अभिशाप की जननी बन जाती है।

ख़लील जिब्रान

आपके अपने कार्य आपके सभी शत्रुओं के कार्यों के मुक़ाबले आपके जीवन का बेहतर दर्पण हैं।

न्गुगी वा थ्योंगो

संसार दर्पण है।

ओशो

अगर आपका चेहरा टेढ़ा है तो दर्पण को दोष देने का कोई लाभ नहीं है।

निकोलाई गोगोल

आइनों को प्रतिबिंब होने के पहले बहुत सोचना चाहिए।

ज्याँ कोक्तो

यथार्थ का दर्पण जिस प्रकार जगत की बाह्य परिस्थितियाँ हैं, उसी प्रकार आदर्श का दर्पण मनुष्य के भीतर का मन है।

सुमित्रानंदन पंत
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