शब्द पर उद्धरण
वर्णों के मेल से बने
सार्थक वर्णसमुदाय को शब्द कहा जाता है। इनकी रचना ध्वनि और अर्थ के मेल से होती है। शब्द को ब्रहम भी कहा गया है। इस चयन में ‘शब्द’ शब्द पर बल रखती कविताओं का संकलन किया गया है।

‘यह सुरक्षित कुसुम ग्रहण करने योग्य है; यह ग्राम्य है, फलतः त्याज्य है; यह गूँथने पर सुंदर लगेगा; इसका यह उपयुक्त स्थान है और इसका यह’—इस प्रकार जैसे पुष्पों को भली-भाँति पहचानकर माली माला का निर्माण करता है, उसी प्रकार सजग बुद्धि से काव्यों में शब्दों का विन्यास करना चाहिए।

पाणिनि के सामने संस्कृत वाङ्मय और लोक-जीवन का बृहत् भंडार फैला हुआ था। वह नित्य प्रति प्रयोग में आनेवाले शब्दों से भरा हुआ था। इस भंडार में जो शब्द कुछ भी निजी विशेषता लिए हुए था, उसी का उल्लेख सूत्रों में या गणपाठ में आ गया है।

व्याकरण रूपी सागर के सूत्र जल हैं, वार्तिक आवर्त्त (भँवर) हैं, पारायण (भाष्य, कौमुदी आदि) रसातल हैं, धातुपाठ, उणादि, गणपाठ आदि ग्राह हैं। (उस व्याकरण रूपी सागर) को पार करने के लिए चिंतन-मनन विशाल नाव है। धीर व्यक्ति उसके तट को लक्ष्य बनाते हैं और बुद्धिहीन व्यक्ति उसकी निंदा करते हैं। समस्त अन्य विद्या रूपी हथिनियाँ उसका निरंतर उपभोग करती हैं। इस दुरवगाह्य व्याकरण रूपी सागर को बिना पार किए कोई व्यक्ति शब्द रूपी रत्न तक पहुँचने में समर्थ नहीं हो पाता।

धर्म स्त्री पर टिका है, सभ्यता स्त्री पर निर्भर है और फ़ैशन की जड़ भी वही है। बात क्यों बढ़ाओ, एक शब्द में कहो—दुनिया स्त्री पर टिकी है।

यथार्थ के प्रति मनुष्य की जानकारी बदलती रहती है या दूसरे शब्दों में वह विकसित होती रहती है। तब उस यथार्थ विशेष का बोध कराने वाले शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है।

हर नई पीढ़ी अपने पुरखों से वसीयत के रूप में 'शब्द-ज्ञान' का भंडार प्राप्त करती है और अपने नए अनुभवों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर, उन परम्परागत शब्दों को नए अर्थों का नया बाना पहनाती रहती है।

दाईं ओर के दरवाज़े से एक पुरुष एक घर में दाख़िल होता है, जहाँ पर एक फ़ैमिली काउंसिल की मीटिंग चल रही है, वह आख़िरी वक्ता के आख़िरी शब्द सुनता है, उसे अपनी स्मृति में रखता है और बाईं ओर के दरवाज़े से निकलकर विश्व को उनका निर्णय सुना देता है। शब्द-निर्णय सच है, लेकिन अपने आपमें शून्य भी। अगर वे आख़िरी सत्य की मदद से कोई निर्णय लेना चाहते तो उन्हें उस कमरे में हमेशा के लिए रहना पड़ता, उस फ़ैमिली काउंसिल का हिस्सा होना पड़ता और अंततः वे कोई निर्णय ले पाने में अक्षम हो जाते। सिर्फ़ एक पक्ष ही निर्णय दे सकता है, लेकिन एक पक्ष के रूप में वह निर्णय नहीं दे सकता। जिसका तात्पर्य यह है कि इस विश्व में न्याय की कोई संभावना नहीं है, सिर्फ़ यत्र-तत्र उसकी चमक है।

मेरे शब्दों और रंगों की पसंद से यह जानने का प्रयास कीजिए कि मैं कौन हूँ, क्योंकि आपके जैसे चौकस लोग चोर को पकड़ने के लिए पैरों के निशान की जाँच कर सकते हैं।
-
संबंधित विषय : पैरों के निशानऔर 1 अन्य

शब्दों के ब्रह्मांड में सोलह-सोलह सूर्य प्रज्वलित रहे हैं। वहाँ कुछ भी बाधित नहीं है, सब कुछ पूर्ण है, प्रचुर है।

शब्द कैसे कार्य करते हैं, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हमें उनके प्रयोग का ‘निरीक्षण’ करना और उससे सीखना पड़ता है।

सपने कैसे मरते हैं, इस सच्चाई का पता लगाने के लिए, आपको सपने देखने वालों के शब्दों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

शब्दों, लेखन और पुस्तकों के बिना न कोई इतिहास होगा और न ही मानवता की कोई अवधारणा होगी।

'शब्द नित्य है'—शब्दसंबंधी यह कल्पना निरर्थक है, क्योंकि जहाँ प्रत्यक्ष या अनुमान में से कोई प्रमाण हो, उसी की सत्ता वस्तुतः सत्य है।

अनुवादक के लिए बुनियादी तत्व शब्द हैं—वाक्य नहीं।

मैंने एक दिन बाज़ार में एक कुम्हार को देखा जो मिट्टी के टुकड़े को अपने पैरों से रौंद रहा था। वह मिट्टी अपनी जिह्वा से उससे यह शब्द कह रही थी—कभी मैं भी तेरी तरह मनुष्य के रूप में थी और मुझमें भी ये सब बातें वर्तमान थीं।

जब रुको तो शब्दों के बारे में मत सोचो, बल्कि उस दृश्य को और बेहतर करके देखो।

जिन शब्दों से मैं अपनी स्मृति को अभिव्यक्त करता हूँ, वे मेरी स्मृति-प्रतिक्रियाएँ हैं।

एक शब्द लिखने के बाद अगले शब्द पर जाने के लिए जगह पार करनी होती है।


साधारण चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं और सीधे-सादे शब्द निर्णयकारी।

अर्थ का अनुवाद किया जा सकता है। शब्द का अनुवाद नहीं किया जा सकता है… संक्षेप में—शब्द का अनुवाद कर सकते हैं, उसकी ध्वनि का नहीं।

आस्थावान होने का मतलब अपने भीतर के अक्षय तत्व को स्वतंत्र करना है, और स्पष्ट शब्दों में कहें तो ख़ुद को स्वतंत्र करना है या और स्पष्ट कहें तो ख़ुद अक्षय होना है या और और स्पष्ट शब्दों में कहें तो ‘होना’ है।

बुक-मूवी—शब्दों में दिखती फ़िल्म है, दृश्य शैली का अमेरिकी रूप।

शब्द तो साक्षात् कर्म ही हैं।

बहस के धरातल पर नया शब्द विवेचन की भूमि में डाले गए नए बीज बोने जैसा है। किसी बात के अभिप्राय को स्पष्ट करने की लालसा अति तीव्र होती है।

शब्द मेरे साथ भाग गए।

लिखते हुए साधारण शब्दों का चयन करें : असंबद्ध लेखन और वाक्-पटुता से बचें—फिर भी, यह सच है, कविता आनंददायक है; सबसे अच्छा गद्य वह है जिसमें भरपूर काव्य विद्यमान है।

जब शब्दों में कोई अर्थ नहीं होता, तब मुझे तेज़ी से चक्कर आने लगते हैं।

बात करो, बात करो, बात करो : शब्दों की निरी शोकाकुल करने वाली मूर्खता।

भीतर की नज़रों के अर्थपूर्ण सार को शब्दों के सागर में तैरते हुए तैयार करो।

शब्द। शब्द। मैं शब्दों के साथ इस उम्मीद में खेलती हूँ कि शायद कोई संयोजन, यहाँ तक कि अवसरवश संयोजन भी वह बात कह सके जो मैं कहना चाहती हूँ।

स्त्री के दुःख इतने गंभीर होते हैं कि उसके शब्द उसका दशमांश भी नहीं कह सकते।

रिल्के के शब्दों में—हम जिसे सौंदर्य कहते हैं, वह आतंक का पहला संकेत है।

जब अंत आता है तब दृश्यों की स्मृति नहीं बचती, सिर्फ़ शब्द बचते हैं।

एक कविता तब महानता अर्जित करती है : जब हमें उसमें हमारी इच्छाओं, चाहतों को शब्द मिल रहे होते हैं; न कि जब वह किसी घटना का दृष्टांत कर रही हो।

एक शब्द के बाद दूसरा शब्द और फिर एक और शब्द—ये मिलकर ताक़त बन जाते हैं।

शब्दों का कोई भी क्रम एक आनंद के बजाय क्या हो।

मैं जिन शब्दों को बोलते हुए उठा वे मुझे समझ नहीं आए। वे शब्द कविता थे।

मनुष्य-जीवन में जो भाषा और शब्द की सार्थकता है, प्रेमियों के जीवन में इन प्रेम-काव्यों की भी ठीक वही सार्थकता है।

शब्द और अर्थ दोनों मिलकर ही काव्य कहलाते हैं। यह काव्य दो प्रकार का होता है : गद्य और पद्य। संस्कृत, प्राकृत और इनसे भिन्न अपभ्रंश—भाषा के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है।
-
संबंधित विषय : अपभ्रंश भाषाऔर 5 अन्य

अर्थ की प्रतीति के लिए कथित अकारादि वर्णों का सार्थक समुदाय ही शब्द कहा जाता है।

शब्द संकेत चिह्न हैं जो साझा स्मृतियों को बयान करते हैं।

काव्य में, कवि-परंपरा द्वारा प्रयुक्त्त, श्रुतिपेशल और सार्थक शब्द ही प्रयोग करना चाहिए। पदविन्यास की चारुता अन्य सभी अलंकारों से बढ़कर है।

जिसके शब्द लोकप्रसिद्ध (लोकप्रचलित) हो; पदों की संधियाँ भली प्रकार से मिली हुई हों; जो ओजस्वी, प्रसाद गुणसंपन्न तथा सहज उच्चार्य हो, वही विदग्ध कवियों का वांछित यमक है, अर्थात् विद्वान ऐसे यमक की ही प्रशंसा करते हैं।

जिस प्रकार हर रंग और रेखा चित्र नहीं है, हर ध्वनि संगीत नहीं है, शरीर की हर भाव-भंगिमा नृत्य नहीं है, वस्तु की हर आकृति शिल्प नहीं है, हर शब्द साहित्य नहीं है—उसी प्रकार हर ध्वनि, हर मुद्रा, हर रंग व रेखा और हर आकृति से प्राप्त होने वाला आनन्द कला का आनन्द नहीं है।

हमें जिस पाप ने घेर रखा है, वह हमारा मतभेद नहीं बल्कि हमारा ओछापन है। हम शब्दों पर झगड़ा करते हैं। कई बार तो हम परछाई के लिए लड़ते हैं और मूल वस्तु को खो बैठते हैं।

न वह शब्द है, न अर्थ, न न्याय और न कला ही, जो काव्य का अंग न बन सके, अर्थात् काव्य में सभी शब्दों, अर्थों, दर्शनों, कलाओं आदि का प्रयोग हो सकता है। अहो! कवि का दायित्व कितना बड़ा है।

शब्द अपरिवर्तनीय (नित्य) और अनश्वर है और नाद से भिन्न है। अबोध व्यक्ति सांकेतिक अर्थों को पारमार्थिक मानते हैं।

पाणिनि ने जब व्याकरणशास्त्र की रचना करने की बात सोची, तो उन्होंने घूम-घूमकर शब्द-सामग्री का संकलन किया, और जो देश की भिन्न-भिन्न राजधानियाँ या प्रसिद्ध स्थान थे, उनमें जाकर उन्होंने उच्चारण, अर्थों, शब्दों, मुहावरों और धातुओं के विषय में अपनी सामग्री का संकलन किया।

किसी यथार्थ के मिट जाने पर यह आवश्यक नहीं है कि उससे संबंधित शब्द भी मिट जाए, उस मृत यथार्थ का बोध कराने वाला शब्द—किसी दूसरे यथार्थ का बोधक बन जाता है।