
इतिहासकार को हरेक के साथ न्याय करने का अपना मिशन कभी भूलना नहीं चाहिए। निर्धन और संपत्तिवान सब उसकी क़लम के आगे बराबर हैं; उसके सामने किसान अपनी दरिद्रता की भव्यता के साथ उपस्थित होता है, और धनवान अपनी मूर्खता की क्षुद्रता के साथ।


दुनिया में परोपकार की नहीं, बल्कि न्याय की कमी है।

आज के ज़माने में ऐसा होता है कि बहुत सी बातें क़ानून के अनुकूल होने पर भी न्यायबुद्धि के प्रतिकूल होती हैं। इसलिए न्याय के रास्ते धन कमाना ही ठीक हो, तो मनुष्य का सबसे पहला काम न्याय-बुद्धि को सीखना है।

जिस प्रकार बिरले ही दुराचारियों को अपने कुकर्मों का दंड मिलता है, उसी प्रकार सज्जनता का दंड पाना अनिवार्य है।

न्याय की अदालतों से भी एक बड़ी अदालत होती है। वह अदालत अंतर की आवाज़ की है और वह अन्य सब अदालतों से ऊपर की अदालत है।

यह निश्चित है कि अज्ञान, ताक़त के साथ मिलकर; न्याय के लिए सबसे क्रूर शत्रु हो सकता है।

कौन न कहेगा कि महत्त्वशाली व्यक्तियों के सौभाग्य-अभिनय में धूर्तता का बहुत हाथ होता है। जिसके रहस्यों को सुनने से रोम कूप स्वेद जल से भर उठे, जिसके अपराध का पात्र छलक रहा है, वही समाज का नेता है। जिसके सर्वस्व-हरणकारी करों से कितनों का सर्वनाश हो चुका है, वही महाराज है। जिसके दंडनीय कार्यो का न्याय करने में परमात्मा के समय लगे, वही दंड-विधायक है।