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मनुष्यता पर उद्धरण

मानवीय संवेदना के मूल स्वभाव को ठीक से समझे बिना सब कुछ को ख़ारिज कर देने का औद्धत्य कभी फलप्रसू नहीं होता।

कृष्ण बिहारी मिश्र

सत्पुरुषों की महानता उनके अंतःकरण में होती है, कि लोगों की प्रशंसा में।

थॉमस ए केम्पिस

कला की कोई भी क्रिया, मनुष्य और जीवन-धारण के लिए अनिवार्य नहीं है। इसलिए कला ही मनुष्य को वह क्षेत्र प्रदान करती है, जिसमें वह अपने व्यक्तित्व का सच्चा विकास कर सकता है।

रामधारी सिंह दिनकर
  • संबंधित विषय : कला

मानव को अपने राष्ट्र की सेवा के ऊपर किसी विश्व-भावना आदर्श को पहला स्थान नहीं देना चाहिए।... देशभक्ति तो मानवता के लक्ष्य विश्वबंधुत्व का ही एक पक्ष है।

श्री अरविंद

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

खलील जिब्रान

मृत्यु वास्तव में मानवता के लिए एक महान वरदान है, इसके बिना कोई वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती।

अल्फ़्रेड एडलर

ख़ुद को मनुष्यता की कसौटी पर कसो, यह अनास्थावान को अनास्था और आस्थावान को आस्था की ओर अग्रसर करता है।

फ्रांत्स काफ़्का

हम मानवता से प्यार नहीं कर सकते हैं। हम केवल मानव से प्यार कर सकते हैं।

ग्राहम ग्रीन

मुझे लगता है कि मानवता भूल गई है—यह ग्रह आनंद के लिए है।

एलिस वॉकर

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

तंग मज़हबों में सीमित हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।

किशनचंद 'बेवस'

यह वह बात नहीं है जो वकील बताए कि मुझे करनी चाहिए, अपितु यह वह बात है जो मानवता, विवेक और न्याय बताते हैं कि मुझे करनी चाहिए।

एडमंड बर्क

सभी के लिए एक क़ानून है अर्थात् वह क़ानून जो सभी क़ानूनों का शासक है, हमारे विधाता का क़ानून, मानवता, न्याय, समता का क़ानून, प्रकृति का क़ानून, राष्ट्रों का कानून।

एडमंड बर्क

जो मानवीय जगत् की मानवता की आधारशिला है, जिस पर मानवता टिकी है, उसे धर्म कहते हैं।

किशोरीदास वाजपेयी

अच्छा भोजन करने के बाद मैं अक्सर मानवतावादी हो जाता हूँ।

हरिशंकर परसाई

हिंसा से मुक्त हो जाने का अर्थ है उस प्रत्येक चीज़ से मुक्त हो जाना, जिसे एक मनुष्य को साँप रखा है, जैसे—विश्वास, धार्मिक मत, कर्मकाँड तथा इस तरह की मूढ़ताएँ : मेरा देश, मेरा ईश्वर, तुम्हारा ईश्वर, मेरा मत, तुम्हारा मत, मेरा आदर्श, तुम्हारा आदर्श।

जे. कृष्णमूर्ति

मनुष्य के सारे कर्म-कलाप के मूल में है उसकी इच्छाशक्ति। यह इच्छाशक्ति उसके रसबोध और सौंदर्य-रुचि से सीधे जुड़ी है। रसबोध और रुचि ही हमारे दैनन्दिन जीवन के शुभ और अशुभ का स्रोत है।

कुबेरनाथ राय

किसी भी चीज़ का अवलोकन करने के लिए—चाहे यह आपकी पत्नी हो, आपका पड़ोसी हो या बादल हो—आपके पास एक ऐसा मन होना चाहिए जो अत्यंत संवेदनशील हो।

जे. कृष्णमूर्ति

आदमी और आदमी को जोड़ने वाली वह संवेदना, जो लालित्य-उल्लास की जननी है—को किस विषैले धुएँ ने मार दिया?

कृष्ण बिहारी मिश्र

प्रयोजन के अतीत पदार्थ का ही नाम सौंदर्य है, प्रेम है, भक्ति है, मनुष्यता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

ग़लती करना मानवीय है किंतु क्षमा करना दिव्य है।

अलेक्ज़ेंडर पोप

जब कोयल की आवाज़ आदमी के मन में आंदोलित करती है तो कोयल भी आदमी का इशारा कुछ-कुछ ज़रूर समझती होगी।

कृष्ण बिहारी मिश्र

विभिन्न युगों में साहित्यिक साधनाओं के मूल में कोई कोई व्यापक मानवीय विश्वास होता है। आधुनिक युग का यह व्यापक विश्वास मानवतावाद है। इसे मध्य युग के उस मानवतावाद से घुला नहीं देना चाहिए जिसमें किसी-न-किसी रूप में यह स्वीकार किया गया था कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है और भगवान अपनी सर्वोत्तम लीलाओं का विस्तार नर रूप धारण करके ही करते हैं। नवीन मानवतावादी विश्वास की सबसे बड़ी बात है, इसकी ऐहिक पुष्टि और मनुष्य के मूल्य और महत्त्व की मर्यादा का बोध।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

स्मग्र निसर्ग के प्रति संवेदनशील होकर ‘मानुष्य सत्य’ की रक्षा की जा सकती है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

गरिमापूर्ण मृत्यु के लिए मनुष्य को पहले गरिमापूर्ण ढंग से जीना सीखना चाहिए। वही मृत्यु भव्य है जो भली प्रकार जिए गए जीवन अर्थात् सिद्धांतों के लिए, मातृभूमि के लिए और मानवता के लिए जिए गए जीवन के प्रासाद का शिखर बनती है।

लाला लाजपत राय

नए युग को अत्यंत संक्षेप में बताना हो तो कहेंगे यह युग मानवता का युग है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

इतिहास-विधाता का स्पष्ट इंगित इसी ओर है कि मनुष्य में जो 'मनुष्यता' है, जो उसे पशु से अलग कर देती है, वही आराध्य है, क्या साहित्य और क्या राजनीति, सब का एकमात्र लक्ष्य इसी मनुष्यता की सर्वांगीण उन्नति है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

हया मनुष्य को उदार, नमनीय और संस्कृत बनाती है। उसके मन की घेरान को तोड़ती है। जब भीतरी घेरान टूट जाती है तब बाहरी घेरान के टूटते समय नहीं लगता। और जब बाहर-भीतर की घेरान टूट जाती है तो मनुष्य को सहज रास्ता मिल जाता है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

मृत्यु का आघात जिस करुणा के स्रोत को उद्वेलित करता है, वह करुणा ही सबसे बड़ी मानवीय निधि है।

विद्यानिवास मिश्र

शिल्पकला में प्रकृति के गौरव और मानवीय कला का अद्भुत समन्वय है।

विजयदान देथा

मनुष्य की विकास यात्रा जब कभी अवरुद्ध हुई है, कारण उसका बेहया मन रहा है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

प्रेम, मित्रता की भूखी मानवता! बार-बार अपने को ठगा कर भी वह उसी के लिए झगड़ती है।

जयशंकर प्रसाद

स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम—ये भव्य मानवता का त्रिक पूरा करते हैं।

श्री अरविंद

मनुष्य की पहचान निस्संदेह ममता है, पर साथ ही मनुष्यता का माप-दंड भी उस ममता का दान है।

विद्यानिवास मिश्र

मनुष्यता सब प्रकार की देशभक्ति और देशाभिमान के भावों से ऊँची चीज़ है।

विनायक दामोदर सावरकर

भाव-संपदा की उपलब्धि ही शायद भूमा का सुख है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

आधुनिकता यदि धरती की धूल से विलग करती हो, आत्मलीन बनाती हो, उसके स्पर्श से यदि आदमी समाज के साथ हँसना-रोना भूल जाता हो तो मुझे नहीं चाहिए आधुनिकता की ऐसी दुम।

कृष्ण बिहारी मिश्र

मनुष्यता ही ऊँची देशभक्ति है।

विनायक दामोदर सावरकर

खादी मानवीय मूल्यों की प्रतीक है, जबकि मिल का कपड़ा केवल भौतिक मूल्य प्रकट करता है।

महात्मा गांधी

भोग की राजनीति ही वह दैत्य है जिसने मानवीय संवेदना का गला घोंट दिया और सार अन्तवैयक्तिक संबंध छिन्न-भिन्न हो गये।

कृष्ण बिहारी मिश्र

पापविद्ध बयार संवेदना का संहार करने पर आमादा है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

जब हम दूसरों के प्रति इतनी जल्दी अपनी राय बना लेते हैं, तो इंसान होने का एक महत्वपूर्ण पहलू कहीं खो जाता है।

अशदीन डॉक्टर

मनुष्य कभी वह नहीं होता जो वह है, बल्कि वह होता है जो वह खोजता है।

ओक्ताविओ पाज़

नदियों के नाम तुम्हारे साथ रहते हैं। वे नदियाँ कितनी अंतहीन लगती हैं! तुम्हारे खेत ख़ाली पड़े हैं, शहर की मीनारें पहले जैसी नहीं रहीं। तुम सीमा पर खड़े होकर मौन हो।

चेस्लाव मीलोष

एक इंसान दूसरे इंसान से मायूस हो सकता है, लेकिन इंसानियत से मायूस नहीं होना चाहिए।

जौन एलिया

अपने हिंसा-मूलक आचरणों द्वारा जो लोग आम लोगों में आतंक की सृष्टि करना चाहते हैं, वे स्वयं इतिहास-शक्ति से आतंकित हैं।

कृष्ण बिहारी मिश्र

मैं सोचता हूँ, जो दूसरे के उन्मुक्त उल्लास से अगरा नहीं उठता, उसे दूसरे की पीड़ा परेशान कैसे करेगी?

कृष्ण बिहारी मिश्र

एक वस्तु का अपना प्राकृतिक गुण होता है। व्यक्ति का भी अपना प्राकृतिक गुण होता है। मूल्य व्यक्ति और वस्तु के प्राकृतिक गुण का लगाया जाकर प्राय: दूसरों की उस गुण को बेचने की शक्ति का लगाया जाता है।

मोहन राकेश

वह मुस्कराहट जो तहों में छिपे हुए मनुष्यत्व को निखारकर बाहर ले आती है, यदि सोद्देश्य हो तो, वह उसके सौंदर्य की वेश्यावृत्ति है।

मोहन राकेश

अंधी अज्ञानता हमें गुमराह करती है। अरे! दुष्ट मनुष्यों, अपनी आँखें खोलो!

लियोनार्डो दा विंची