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मनुष्यता पर उद्धरण

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

अच्छा भोजन करने के बाद मैं अक्सर मानवतावादी हो जाता हूँ।

हरिशंकर परसाई

एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति प्रेम महसूस करना, शायद यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है, जो मनुष्यों को दी गई है। यही अंतिम संकट है। यह वह कार्य है जिसके लिए बाकी सभी कार्य मात्र एक तैयारी हैं।

रेनर मारिया रिल्के

अंधी अज्ञानता हमें गुमराह करती है। अरे! दुष्ट मनुष्यों, अपनी आँखें खोलो!

लियोनार्डो दा विंची

एक वस्तु का अपना प्राकृतिक गुण होता है। व्यक्ति का भी अपना प्राकृतिक गुण होता है। मूल्य व्यक्ति और वस्तु के प्राकृतिक गुण का लगाया जाकर प्राय: दूसरों की उस गुण को बेचने की शक्ति का लगाया जाता है।

मोहन राकेश

वह मुस्कराहट जो तहों में छिपे हुए मनुष्यत्व को निखारकर बाहर ले आती है, यदि सोद्देश्य हो तो, वह उसके सौंदर्य की वेश्यावृत्ति है।

मोहन राकेश

अब कोई केवल शरीफ़ नहीं रह गया है। हर शरीफ़ के साथ एक दुमछल्ला लगा हुआ है। हिंदू शरीफ़ मुसलमान शरीफ़, उर्दू शरीफ़, हिंदी शरीफ़ और बिहार शरीफ़! दूर-दूर तक शरीफ़ों का एक जंगल फैला हुआ है।

राही मासूम रज़ा

आदमी और देवता में यही फ़र्क़ है शायद। ज़हर अकेले शिव पीते हैं। ज़हर अकेला सुकरात पीता है। सलीब पर अकेले ईसा चढ़ते हैं। दुनिया त्यागकर एक अकेला राजकुमार निकलता है।

राही मासूम रज़ा

मेरा मानना है कि प्यार और सम्मान करने की क्षमता, मनुष्य को दिया हुआ ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है।

रवींद्रनाथ टैगोर

साधारण दुर्बल मनुष्य यदि भाषा का मिथ्याचारी के रूप में उपयोग करता है तो करे, लेखक का काम होता है कि वह उस मनुष्य को उसके झूठ की शर्मिंदगी के बारे में बता दें।

शंख घोष

मानवीय अनुभव प्रतिदिन यह स्पष्ट करता है कि उच्चतम विचार जो हम प्राप्त कर सकते हैं, उस रहस्यमय सत्य से अभी भी कहीं निम्नतर रहेगा, जिसकी हम खोज कर रहे हैं।

मौरिस मैटरलिंक

मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे सम्हालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।

जयशंकर प्रसाद

यह हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय है, हम कितने ही चरित्रवान हों, कितने ही बुद्धिमान हों, कितने ही विचारशील हों, पर अँग्रेज़ी भाषा का ज्ञान होने से उनका कुछ मूल्य नहीं, हमसे अधम और कौन होगा कि इस अन्याय को चुपचाप सहते हैं। नहीं बल्कि उसपर गर्व करते हैं।

प्रेमचंद

मनुष्य हर विवेक से ऊपर है–एक चेतना, जो प्रकृति का नहीं बल्कि इतिहास का उत्पाद है।

अंतोनियो ग्राम्शी

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