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मनुष्यता पर कवितांश

वैभवरहित व्यक्ति

एक एक दिन

बन सकता है वैभवशाली

लेकिन! जिनके हृदय में दया नहीं

उनका उद्धार हो सकता कभी नहीं

तिरुवल्लुवर

दूसरों से हिल-मिलकर

प्रसन्नता से जो नहीं रह सकते

उन्हें यह बड़ा विश्व

दिन में भी

रात के सदृश अंधकारमय है

तिरुवल्लुवर

ऊँचे ओहदे से

नीचे गिरने वाले लोग—

सिर से गिरे हुए बालों के सदृश हैं

तिरुवल्लुवर

जो स्वप्न में भी

माँगने वालों को

'नहीं' नहीं कहते

उनसे याचना करना

दान देने के बराबर है

तिरुवल्लुवर