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समाज पर कवितांश

दूसरों से हिल-मिलकर

प्रसन्नता से जो नहीं रह सकते

उन्हें यह बड़ा विश्व

दिन में भी

रात के सदृश अंधकारमय है

तिरुवल्लुवर

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