प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र
वाल्टर बेंजामिन का एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण निबंध है—‘द वर्क ऑफ़ आर्ट इन द एज ऑफ़ मेकेनिकल रिप्रोडक्शन'। बीसवीं सदी में लिखा हुआ यह निबंध आज पहले से भी कहीं अधिक प्रासंगिक और ज्वलंत दिखाई देता है। बी
आदित्य शुक्ल
एक ख़त मैकॉले के नाम
श्रीमान मैकॉले साहब,
आप मुझे नहीं जानते। जानेंगे भी कैसे? आपके और मेरे बीच वक़्त का फ़ासला बहुत ज़्यादा है। इसे घड़ी की सुइयों से नहीं नापा जा सकता। इस फ़ासले में काल के सैकड़ों भँवर हैं। इतिहास के म
प्रियंवद
मैं नायकविहीन दुनिया में रहने का स्वप्न देखता हूँ
मैं कभी हीरो नहीं होना चाहता था। मैंने कभी कोई स्वप्न ऐसा नहीं देखा जिसमें मैं छिनी उँगली पर गोवर्धन उठाए खड़ा हूँ और लोग उसकी छाया में मेरी प्रशस्ति में गीत गा रहे हैं। सख़्त चेहरों और रोबीली आँखों से
अनुराग अनंत
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