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प्रेम पर कवितांश

प्रेम के बारे में जहाँ

यह कहा जाता हो कि प्रेम में तो आम व्यक्ति भी कवि-शाइर हो जाता है, वहाँ प्रेम का सर्वप्रमुख काव्य-विषय होना अत्यंत नैसर्गिक है। सात सौ से अधिक काव्य-अभिव्यक्तियों का यह व्यापक और विशिष्ट चयन प्रेम के इर्द-गिर्द इतराती कविताओं से किया गया है। इनमें प्रेम के विविध पक्षों को पढ़ा-परखा जा सकता है।

मैं मरूँगा दो बार

एक बार प्रेम में

दूसरी बार जीवन में मरूँगा।

नवीन रांगियाल

मुलाक़ातें रहती हैं समय में

मृत्यु से भी ज़्यादा देर तक।

नवीन रांगियाल

अगर तुम चाहते हो

कि कोई तुम्हें बहुत प्रेम करे

और दुःख भी दे

तो तुम्हें मरना पड़ेगा।

नवीन रांगियाल

प्रेम के तत्त्व पर आधृत

तन ही प्राणवंत है प्रेम

प्रेमहीन शरीर कंकाल मात्र है—

चमड़े से मढ़ा

तिरुवल्लुवर

प्रेम का स्पर्श एक लंबी नींद है

सुदीप सोहनी

उतना ही प्यार करो

जितना भुलाया जा सके।

नवीन रांगियाल

प्रेम के सारे आवेग असभ्य ही होते हैं

सुदीप सोहनी

यदि आँख ही खुले तो अच्छा है

मेरे प्रियतम, जो स्वप्न में आते हैं

मुझसे कभी नहीं बिछुड़ेंगे

तिरुवल्लुवर

नींदों ने बहुत प्रेम छीने हैं

सुदीप सोहनी

इस पृथ्वी पर जो गृहस्थ

धर्मनिष्ठ रहता है

वह स्वर्ग के देवगणों के

सदृश पाता है सम्मान

तिरुवल्लुवर

मैं तुम्हें इतना चूमना चाहता हूँ कि

पृथ्वी पर जगह ख़त्म हो जाए।

नवीन रांगियाल

जितना उसके बारे में जानते हैं

उतना ही उसके बारे में कम जानकारी मिलती है

उस नायिका से अधिकाधिक सुख मिलने पर

उतना ही उसके बारे में जान पाते हैं

तिरुवल्लुवर

आग तो छूने पर ही जला सकती है

किंतु काम-ज्वर तो बिछुड़ने पर जलाता है

तिरुवल्लुवर

देखना, स्पर्श करना,

सूँघना, सुनना, अनुभव करना—

पंचेंद्रियों का सुख

नायिका से पूर्ण रूप से मिल जाता है

तिरुवल्लुवर

अपनी प्रिय नायिका के सुकोमल कंधों पर

सोने वाले को जो आंनद मिलता है

वह अपने आपमें परम सुखोप्लब्धि है

तिरुवल्लुवर

नायिका बिछुड़ने पर जला देती है

निकट जाने पर शीतलता प्रदान करती है

इस बाला ने इस प्रकार की

विचित्र आग कहाँ से पाई ?

तिरुवल्लुवर

किसी को गहरी नींद सोने देना भी

प्यार करने का एक तरीक़ा है।

नवीन रांगियाल

आत्मा और शरीर के सदृश

मुझमें और उस नायिका में अंतरंगता है

तिरुवल्लुवर

मधु पीने पर ही नशीला प्रतीत होता है

पर काम तो

दर्शन मात्र से उन्मत्त कर देता है

तिरुवल्लुवर

प्रेमशून्य व्यक्ति

अपने लिए सब कुछ बटोरते हैं

प्रेमी जन जो दूसरों के होते हैं

अपना सब कुछ—अस्थि तक—

बलिदान कर देते हैं।

तिरुवल्लुवर

प्रियतम का दूत

मेरे स्वप्न में आया

मैं उसका अतिथि-सत्कार

किस प्रकार करूँ?

तिरुवल्लुवर

दूसरों से हिल-मिलकर

प्रसन्नता से जो नहीं रह सकते

उन्हें यह बड़ा विश्व

दिन में भी

रात के सदृश अंधकारमय है

तिरुवल्लुवर

मैंने अपनी प्रियतमा से कहा,

मैं तुमको सबसे बढ़कर प्यार करता हूँ

इसे सुनकर वह बहुत ग़ुस्से में भर गई

और रूठकर कहने लगी,

फिर तुम किस-किसको प्यार करते हो भला?

तिरुवल्लुवर

सभ्यताओं की घाटियों का पहला झूठ था प्रेम

सुदीप सोहनी

मैं जीवित हूँ इसलिए

कि उसके साथ सुख के कुछेक दिन मैंने बिताए

उन्हीं के सुखदायी क्षणों का स्मरण कर

जीवित हूँ मैं

वरना जीवित नहीं रह पाती

तिरुवल्लुवर

मेरे पौरुष के सम्मुख टिक नहीं सकते

दुश्मन युद्ध-भूमि में

लेकिन उस नायिका के तेजोमय भाल को

देखते ही मेरी शक्ति चूर-चूर हो जाती है

तिरुवल्लुवर

जो दवा बीमारी को दूर कर देती है

वही दवा कभी उल्टा असर भी करती है

लेकिन जो रोग उस नायिका के कारण हुआ

उसकी दवा तो वही है

तिरुवल्लुवर

मैंने तुम्हें जाना और खो दिया

जान लेना एक उबाऊ चीज़ है।

नवीन रांगियाल

मेरे देखते समय

उसने मुझे देखा

देखने पर उसने सिर झुका लिया

यही हमारे प्रेम-बिरवे को

पल्लवित करने के लिए मृदु जलसिंचन है

तिरुवल्लुवर

स्नेही जन स्नेह का निर्वाह करते हैं

अपने मित्र की हानि होने पर भी

उसकी मित्रता कभी नहीं छोड़ेंगे

तिरुवल्लुवर

जब मैं प्रियतम को देखती हूँ

उसका कुछ भी दोष दिखाई नहीं पड़ता

और उसको देख पाऊँ

तो दोष को छोड़कर

मुझे कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता

तिरुवल्लुवर

अगर वह मुझसे बिछुड़कर नहीं जाते

तो यह समाचार मुझे बताओ

प्रियतम के वापस आने के आश्वासन पर

जो जीते रहते हैं, उनसे कहो

तिरुवल्लुवर

सभी स्त्रियाँ समान भाव से

तुम्हें सौंदर्य-पान के लिए निहारा करती है

इसलिए तुम्हारे वक्ष से लगकर

मैं तुम्हारा आलिंगन नहीं करूँगी

तिरुवल्लुवर

मैं उसकी ओर दृष्टिपात करूँ

तो वह सिर झुकाकर

ज़मीन को देखती है

उसकी ओर देखने पर

वह मुझे देख गद्गद् हो उठती है

तिरुवल्लुवर

जितनी बार मिलता हूँ तुमसे

उतनी बार अकेला हो जाता हूँ।

नवीन रांगियाल

स्त्रियाँ जो अपने पतियों से प्यार पाती हैं

वे कामानुभाव को

बीजरहित फल के समान प्राप्त करती हैं।

तिरुवल्लुवर

प्यार का नयापन खा जाता है

प्यार के पुरानेपन को।

नवीन रांगियाल

तुम्हारा प्यार नहीं

मुझे मेरी भावुकता मार डालेगी।

नवीन रांगियाल

मरे हुए आदमी को

हम याद कर सकते हैं

उसे प्यार नहीं कर सकते

नवीन रांगियाल

उसके प्यार में

पा लेता हूँ अपना ईश्वर

और उसे खो देता हूँ।

नवीन रांगियाल