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प्रेम पर ब्लॉग

प्रेम के बारे में जहाँ

यह कहा जाता हो कि प्रेम में तो आम व्यक्ति भी कवि-शाइर हो जाता है, वहाँ प्रेम का सर्वप्रमुख काव्य-विषय होना अत्यंत नैसर्गिक है। सात सौ से अधिक काव्य-अभिव्यक्तियों का यह व्यापक और विशिष्ट चयन प्रेम के इर्द-गिर्द इतराती कविताओं से किया गया है। इनमें प्रेम के विविध पक्षों को पढ़ा-परखा जा सकता है।

साधारण का सहज सौंदर्य

साधारण का सहज सौंदर्य

‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर रख लेना।’’ ‘थ्री ऑफ़ अस’ फ़िल्म के लगभग आधा बीत ज

सुदीप्ति
मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है

मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है

चीज़ों को बुरी तरह टालने की बीमारी पनप गई है। एक पल को कुछ सोचती हूँ, अगले ही पल एक अदृश्य रबर से उसे जल्दबाज़ी से मिटाते हुए बीच में ही छोड़कर दूसरी कोई बात सोचने लगती हूँ। इन दिनों काम है कि लकड़ियों के

अंकिता शाम्भवी
यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ

यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ

हिंदी के साहित्य-सेवियों को पृथिवी-पुत्र बनना चाहिए। वे सच्चे हृदय से यह कह और अनुभव कर सकें— माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः (अथर्ववेद) यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ। लेखकों में यह ज

वासुदेवशरण अग्रवाल
वह क्यों मेरा सरनेम जान लेना चाहता है

वह क्यों मेरा सरनेम जान लेना चाहता है

घड़ी घड़ी की सुइयाँ रुक गई हैं। वक़्त अब भी बीत रहा है। हम यहाँ बैठे हैं। वक़्त के साथ-साथ हम भी बीत रहे हैं। हम रोज़ सुबह उठते हैं और रात को सो जाते हैं। वक़्त से आधा घंटा देर से खाना खाते हैं। रात देर

देवेश
मैंने सूरजमुखी होना चुना है

मैंने सूरजमुखी होना चुना है

मैं जब अपनी उम्र के 29वें साल की दहलीज़ पर थी, तब मैंने अपने आपसे वादा किया था कि मैं अपने 30वें साल में वह नहीं रहूँगी जो मैं नहीं हूँ। अब प्रश्न यह है कि मैं हूँ ही कौन? मुझसे पहले बहुत सारे विद्वान

तोषी
याद करने की कोशिश करता हूँ तो याद आता है

याद करने की कोशिश करता हूँ तो याद आता है

दिन : एक 10 नवंबर 2020 भाई के आरटी-पीसीआर टेस्ट के ‘पॉज़िटिव’ आने के बाद घर में हम सभी ने टेस्ट करवाए। कल हम सब बिरला मंदिर गए। वहाँ दिल्ली सरकार का कैंप लगा है। हम पाँच लोगों में से मेरा टेस्ट पॉज़

शचींद्र आर्य
प्रेम, दुर्घटना, छत और बीते दिन…

प्रेम, दुर्घटना, छत और बीते दिन…

प्रेम प्रेम जितना बराबर की चीज़ महसूस होता है, उतना है नहीं। हमें लगता है, हम बराबर चलेंगे। पर कभी बराबर चलते नहीं। हमारे प्रेम का आदर्श लैला-मजनूँ हुआ करते हैं। हममें से आधे मजनूँ हो जाना चाहते है

देवेश
कहीं जाने की इच्छा (के) लिए

कहीं जाने की इच्छा (के) लिए

मैं बहुत दिनों से एक जगह जाना चाहता हूँ। इन दिनों मेरे पास इतना अवकाश नहीं रहता कि कुछ ज़रूरी कामों के अलावा भी मैं कुछ और कर सकूँ, लेकिन उस जगह का आकर्षण ऐसा दुर्निवार है कि किसी अन्य काम में मेरा मन

अमन त्रिपाठी
अक्टूबर हर पेड़ का सपना है

अक्टूबर हर पेड़ का सपना है

वह चलते हुए अपने पाँव सड़क पर पड़ी सूखी पत्तियों से बचा-बचा कर रख रही थी। यूँ चलते हुए उसका ध्यान थोड़ा मेरी बातों में था, थोड़ा सूखी पत्तियों में और थोड़ा आसमान में सूखते पेड़ों के बीच से झाँकते चाँद

सौरभ अनंत
शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में

प्रदीप्त प्रीत
‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’

‘प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है’

इस सृष्टि में किसी के प्रेम में होना मनुष्य की सबसे बड़ी नेमत है। उसके सपनों के जीवित बचे रहने की एक उम्मीद भरी संभावना। मोमिन का एक मशहूर शे’र है : तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होत

दया शंकर शरण
विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है

विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है

रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर  का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं : ‘‘हम भटकते हैं, क्यूँ भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा मे

सुदीप्ति
अक्टूबर किसी चिड़िया के बिलखने की आवाज़ है

अक्टूबर किसी चिड़िया के बिलखने की आवाज़ है

यहाँ तुम नहीं हो। इस जगह सिर्फ़ तुम्हारी संभावनाएँ हैं, बिल्कुल पिघले हुए मोम की तरह, जिसमें न लौ बची है और न पिघलने की उष्णता। बस बची है, तो रात की एक आहट और किसी ओझल क्षण में जलते रहने की याद। क्वार

आदर्श भूषण
चलो भाग चलते हैं

चलो भाग चलते हैं

तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजना

अतुल तिवारी
‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’

‘कितना संक्षिप्त है प्रेम और भूलने का अरसा कितना लंबा’

प्रिय नेरूदा, तुम कविता की दुनिया में एक चमकता सितारा हो, जिसे एक युवा दूर पृथ्वी से हमेशा निहारता रहता है। उसकी इच्छा है कि उसके घर की दीवारें तुम्हारी तस्वीरों से भरी हों। भविष्य की उसकी यात्राओं

गौरव गुप्ता
शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में

प्रदीप्त प्रीत
उदास दिनों की पूरी तैयारी

उदास दिनों की पूरी तैयारी

शब-ओ-रोज़ छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नहीं

निशांत कौशिक
कल कुछ कल से अलग होगा

कल कुछ कल से अलग होगा

…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी

अविनाश मिश्र