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वासना पर कवितांश

प्रेम के तत्त्व पर आधृत

तन ही प्राणवंत है प्रेम

प्रेमहीन शरीर कंकाल मात्र है—

चमड़े से मढ़ा

तिरुवल्लुवर

मधु पीने पर ही नशीला प्रतीत होता है

पर काम तो

दर्शन मात्र से उन्मत्त कर देता है

तिरुवल्लुवर

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