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निंदा पर कवितांश

निंदा का संबंध दोषकथन,

जुगुप्सा, कुत्सा से है। कुल्लूक भट्ट ने विद्यमान दोष के अभिधान को ‘परीवाद’ और अविद्यमान दोष के अभिधान को ‘निंदा’ कहा है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं से किया गया है, जहाँ निंदा एक प्रमुख संकेत-शब्द या और भाव की तरह इस्तेमाल किया गया है।

आख़िर इतनी भीड़

क्यों लगा रखी है ईश्वर ने दुनिया में

जिस तरफ़ सिर झुकाओ

कृपा करने खड़े हो जाते हैं।

नवीन रांगियाल

ऊँचे ओहदे से

नीचे गिरने वाले लोग—

सिर से गिरे हुए बालों के सदृश हैं

तिरुवल्लुवर

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