निंदा पर दोहे
निंदा का संबंध दोषकथन,
जुगुप्सा, कुत्सा से है। कुल्लूक भट्ट ने विद्यमान दोष के अभिधान को ‘परीवाद’ और अविद्यमान दोष के अभिधान को ‘निंदा’ कहा है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं से किया गया है, जहाँ निंदा एक प्रमुख संकेत-शब्द या और भाव की तरह इस्तेमाल किया गया है।
कोविड में बहरा हुआ
अंधा बीच बज़ार।
शमशानों में ढूँढ़ता
कहाँ गई सरकार॥
तूने आकर खोल दी
एक विचित्र दुकान।
दो चीज़ें ही आँख में
चिता और श्मशान॥
पहले अंधा एक था
अब अंधों की फ़ौज।
राम नाम के घाट पर
मौज मौज ही मौज॥
खाल खींचकर भुस भरा
और निचोड़े हाड़।
राजा जी ने देश के
ख़ूब लड़ाए लाड़॥
मौत मौत ही मौत घर
मौत मौत ही मौत।
आँधी आई मौत की
आए राजा नौत॥
राग मृत्यु की भैरवी
नाचत दे दे ताल।
संग राजा जी नाचते
पहन मुंड की माल॥
राजा गए शिकार को
लिए दुनाली साथ।
सुनकर सिंह दहाड़ को
लौटे ख़ाली हाथ॥
अफ़सर बैठे घरों में
नेता भी घर बंद।
कोरोना ही फिर रहा
सड़कों पर स्वच्छंद॥
जनता ने राजा चुना
नया बनाया तंत्र।
बाँबी में तू हाथ दे
मैं पढ़ता हूँ मंत्र॥
कानों से सुनता नहीं,
आँखों दिखे न राह।
मनुज जाति में दैत्य-सा,
होता तानाशाह॥