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रोग पर दोहे

रोग-पीड़ा-मृत्यु मानव

के स्थायी विषाद के कारण रहे हैं और काव्य में अभिव्यक्ति पाते रहे हैं। इस चयन में रोग के विषय पर अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।

रोगी भोगी आलसी, बहमी हठी अज्ञान।

ये गुन दारिदवान के, सदा रहत भयवान॥

बुधजन

तूने आकर खोल दी

एक विचित्र दुकान।

दो चीज़ें ही आँख में

चिता और श्मशान॥

जीवन सिंह

कोविड का घंटा बजा

आकर तेरे द्वार।

कौन सँभालेगा तुझे

यहाँ सभी बीमार॥

जीवन सिंह

अणिमा गरिमा शक्तियाँ

सब कुछ तेरे पास।

कोरोना के सामने

एटम बम भी घास॥

जीवन सिंह

अति खाने तैं रोग ह्वै, अति बोले ज्या मान।

अति सोये धन हानि ह्वै, अति मति करौ सयान॥

बुधजन