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नेता पर दोहे

भारतीय राजनीति और लोकतंत्र

की दशा-दिशा से संवाद को हिंदी कविता ने किसी कर्तव्य की तरह अपने ऊपर हावी रखा है और इस क्रम में इसके प्रतिनिधि के रूप में नेता या राजनेता से प्रश्नरत बनी रही है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का है।

कोविड में बहरा हुआ

अंधा बीच बज़ार।

शमशानों में ढूँढ़ता

कहाँ गई सरकार॥

जीवन सिंह

तूने आकर खोल दी

एक विचित्र दुकान।

दो चीज़ें ही आँख में

चिता और श्मशान॥

जीवन सिंह

पहले अंधा एक था

अब अंधों की फ़ौज।

राम नाम के घाट पर

मौज मौज ही मौज॥

जीवन सिंह

खाल खींचकर भुस भरा

और निचोड़े हाड़।

राजा जी ने देश के

ख़ूब लड़ाए लाड़॥

जीवन सिंह

मौत मौत ही मौत घर

मौत मौत ही मौत।

आँधी आई मौत की

आए राजा नौत॥

जीवन सिंह

राग मृत्यु की भैरवी

नाचत दे दे ताल।

संग राजा जी नाचते

पहन मुंड की माल॥

जीवन सिंह

अफ़सर बैठे घरों में

नेता भी घर बंद।

कोरोना ही फिर रहा

सड़कों पर स्वच्छंद॥

जीवन सिंह

राजा गए शिकार को

लिए दुनाली साथ।

सुनकर सिंह दहाड़ को

लौटे ख़ाली हाथ॥

जीवन सिंह

जनता ने राजा चुना

नया बनाया तंत्र।

बाँबी में तू हाथ दे

मैं पढ़ता हूँ मंत्र॥

जीवन सिंह

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