नेता पर उद्धरण
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र
की दशा-दिशा से संवाद को हिंदी कविता ने किसी कर्तव्य की तरह अपने ऊपर हावी रखा है और इस क्रम में इसके प्रतिनिधि के रूप में नेता या राजनेता से प्रश्नरत बनी रही है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का है।

ज़माने की हवा का रुख पहिचानकर देश के नेता अपने कार्यक्रम में सुधार नहीं करते हैं तो ज़माना आगे निकल जाएगा और नेता पीछे रह जाएँगे। ज़माना नेताओं के लिए रुका नहीं रहेगा।

मानव की वाणी की अपेक्षा उसका कर्म अधिक अच्छा नेतृत्व कर सकता है।

हमें अपने प्रिय नेताओं के प्रति स्नेह प्रकट करना चाहिए—सार्थक कार्यों और अथक शक्ति के द्वारा। जो प्यार अपने प्रिय के चरण छूने और उसके पास पहुँच कर शोर मचाने से संतुष्ट हो जाता है, भय है कि वह धीरे-धीरे उसके लिए जान लेवा भी हो सकता है।

नेता? नेता कौन है? मनुष्य? एक मनुष्य सब विषयों की पूर्णता पा सकता है? 'न"। इसीलिए नेता मनुष्य नहीं। सभी विषयों की संकलित ज्ञान-राशि का नाम नेता है।

थोड़ा भाषण देना आ जाने से, और अख़बारों मे लिखना सीख जाने से ही नेता बन जाने की नौजवानों मे कल्पना हो तो वह ग़लत है। सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ना चाहिए

जब तक समस्याओं का ढेर नहीं लग जाता और वे बहुत सी गड़बड़ी पैदा नहीं करने लग जातीं, तब तक उन्हें हल करने का प्रयत्न न करना और प्रतीक्षा करते रहना ठीक नहीं। नेताओं को आंदोलन के आगे रहना चाहिए, उसके पीछे नहीं।

संसार नेताओं के पीछे चलता है, चाहे कितनी भी स्वतंत्रता की टाँग तोड़ी जाए। नेता चाहे संसार को डुबा दे और चाहे तार दें, लोग चलेंगे नेताओं के पीछे हो।

यह रोज़ का क़िस्सा है। मंत्री महोदय अपनी गणना में यह भूल गए हैं कि उनकी अपनी मीयाद बँधी है।

नेताओं की तारीफ़ से भरे हुए मानपत्र वास्तव में निरर्थक होते हैं। जो लोग इस तरह की तारीफ़ की आशा रखते हों उन्हें मानपत्र न देना ही उचित है।

हर नेता अन्ततः उबाऊ हो जाता है।

जो आदमी सीधा नेता बन जाता है, वह किसी-न-किसी दिन लुढ़क जाता है।

वही मनुष्य नेता बनने योग्य होता है, जो अपने सहायकों की मूर्खता, अपने अनुगामियों के विश्वासघात, मानव जाति की कृतघ्नता और जनता की गुण ग्रहण-हीनता की कभी शिकायत नहीं करता।

नेता हो जाना बड़ा अच्छा धंधा है।

राजा का कर्त्तव्य यह है कि कवि-समाज का आयोजन करे।

सभी नेताओं को पहले कार्यकर्ता होना चाहिए। जो कार्यकर्ता नहीं बन सकता, वह नेता भी नहीं हो सकता।