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प्रेयसी पर उद्धरण

जैसे बीच में विषम शिलाओं के जाने से नदी का वेग बढ़ जाता है वैसे ही अपने प्रिय से मिलने के सुख में बाधाएँ जाती हैं तो प्रेम सोगुना हो जाता है।

कालिदास

प्रियजन की मृत्यु होती है, प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है।

उमाशंकर जोशी

प्रिय के प्रसन्न होने पर मैं उमंगभरी हो जाती हूँ और प्रिय के उमंग भरे होने पर मैं उनका एक अंग बन जाती हूँ प्रिय मेरे हैं और मैं उनकी हूँ, इस प्रकार हम दोनों अब एक हो गए हैं।

जमाल