
जैसे बीच में विषम शिलाओं के आ जाने से नदी का वेग बढ़ जाता है वैसे ही अपने प्रिय से मिलने के सुख में बाधाएँ आ जाती हैं तो प्रेम सोगुना हो जाता है।

हमें अपने प्रिय नेताओं के प्रति स्नेह प्रकट करना चाहिए—सार्थक कार्यों और अथक शक्ति के द्वारा। जो प्यार अपने प्रिय के चरण छूने और उसके पास पहुँच कर शोर मचाने से संतुष्ट हो जाता है, भय है कि वह धीरे-धीरे उसके लिए जान लेवा भी हो सकता है।

कला ईर्ष्यालु प्रेयसी है।

प्रियजन की मृत्यु होती है, प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है।
