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प्रशंसा पर उद्धरण

निंदा, प्रशंसा, इच्छा, आख्यान, अर्चना, प्रत्याख्यान, उपालंभ, प्रतिषेध, प्रेरणा, सांत्वना, अभ्यवपत्ति, भर्त्सना और अनुनय इन तेरह बातों में ही पत्र से ही प्रकट होने वाले अर्थ प्रवृत्त होते हैं।

चाणक्य

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

जवाहरलाल नेहरू

अगर कोई व्यक्ति आपकी बहुत प्रशंसा करता है, तो आप उससे घृणा करते हैं और आपको उसकी परवाह नहीं होती—और जो व्यक्ति आपकी ओर ध्यान नहीं देता, आप उसकी प्रशंसा करने के लिए तैयार रहते हैं।

कार्सन मैक्कुलर्स

हे संसार के आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक, तू निराकार है, तो भी मैंने मनन में तेरी प्रतिमा की कल्पना की है। मैंने प्रशंसा के शब्दों का प्रयोग करके तेरी अनिर्वचनीयता की उपेक्षा की है।

मैंने तीर्थ-यात्राएँ करके, और दूसरी विधियों से तेरी सर्वव्यापकता पर आघात किया हे सर्वशक्तिमान! हे परआत्मा! आत्मा की परिभ्रांति के कारण जो ये तीन अतिक्रमण मैं मर चुका हूँ, उनके लिए तुझसे क्षमा-याचना करता हूँ।

देवेंद्रनाथ टैगोर

वही मनुष्य महान है जो भीड़ की प्रशंसा की उपेक्षा कर सकता है और उसकी कृपा से स्वतंत्र रहकर प्रसन्न रहता है।

थॉमस एडिसन

अज्ञान प्रशंसा की जननी है।

जॉर्ज चैपमैन

मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।

भास

प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है।

वाल्तेयर

प्रशंसा ऐसा विष है जिसे केवल अल्पमात्राओं में ही ग्रहण किया जा सकता है।

होनोर डी बाल्ज़ाक

व्यक्ति और उसकी प्रशंसा कितने दिन रहेगी?

राहुल सांकृत्यायन

नेताओं की तारीफ़ से भरे हुए मानपत्र वास्तव में निरर्थक होते हैं। जो लोग इस तरह की तारीफ़ की आशा रखते हों उन्हें मानपत्र देना ही उचित है।

महात्मा गांधी

अनुचित प्रशंसा प्रच्छन्न अपकीर्ति ही है।

अलेक्ज़ेंडर पोप

जो हर किसी की प्रशंसा करता है, वह किसी की प्रशंसा नहीं करता।

सैमुअल जॉनसन

मैं उसकी प्रशंसा करूँगा जो मेरी प्रशंसा करेगा।

विलियम शेक्सपियर