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विशाखदत्त

गुप्तयुगीन संस्कृत कवि और नाटककार। 'मुद्राराक्षस' और 'देवीचंद्रगुप्तम्' जैसी कृतियों के लिए सुप्रसिद्ध।

गुप्तयुगीन संस्कृत कवि और नाटककार। 'मुद्राराक्षस' और 'देवीचंद्रगुप्तम्' जैसी कृतियों के लिए सुप्रसिद्ध।

विशाखदत्त की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 7

जिस प्रकार सागर रत्नों की ख़ान है, उसी प्रकार जो शास्त्रों की ख़ान है, उसके गुणों से भी हम संतुष्ट नहीं होते जब हम उससे ईर्ष्या करते हैं।

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सत्य बोलने वाले भी मनुष्य जो कृपणता के कारण वाचाल होते हुए मुख थकने तक अविद्यमान भी गुणों से राजा की स्तुति करते हैं, यह सब अवश्य ही तृष्णा का ही प्रभाव हो सकता है अन्यथा इच्छारहित व्यक्तियों के लिए राजा तिनके के समान तिरस्कार का विषय होता है।

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जब शिष्य अज्ञान के कारण मार्ग को छोड़ देता है तभी गुरु उसके लिए अंकुश के समान हो जाता है। उसे सन्मार्ग में लगाता है।

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पराधीन मनुष्य सुख के आनंद को किस प्रकार जान सकता है।

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मूर्ख किसान का भी अच्छे खेत में पड़ा बीज वृद्धि को प्राप्त हो जाता है।।

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Recitation

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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