चाणक्य की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 26

अतिरूपवती होने से सीता का अपहरण किया गया। अतिगर्वी होने से रावण मारा गया। उदारता के कारण बलि का नाश हुआ। अतः ‘अति’ सर्वत्र त्यागनी चाहिए।
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जैसा अन्न खाया जाता है, वैसी ही प्रजा होती है। दीपक अँधेरे को खाता है और काजल को उत्पन्न करता है।
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मन से विचारे हुए कार्य को वाणी से नहीं कहना चाहिए। मंत्रणा द्वारा गुप्त बात की रक्षा करे। और फिर क्रियात्मक रूप से कर देना चाहिए।
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