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इच्छा पर उद्धरण

चीज़ों को देर तक देखना तुम्हें परिपक्व बनाता है और उनके गहरे अर्थ समझाता है।

विन्सेंट वॉन गॉग

अगर हम ख़ुद में ऐसी इच्छा पाते हैं जिसे इस दुनिया में कुछ भी संतुष्ट नहीं कर सकता है, तो सबसे संभावित स्पष्टीकरण यह है कि हम दूसरी दुनिया के लिए बने हैं।

सी. एस. लुईस

साहित्य और कला की हमारी पूरी परंपरा में, जीव की प्रधान कामना आनंद की अनुभूति है।

लक्ष्मीनारायण मिश्र

पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

संत एकनाथ

मैं निर्विकल्प (परिवर्तन रहित) निराकार, विभुत्व के कारण सर्वव्यापी, सब इंद्रियों के स्पर्श से परे हूँ। मैं मुक्ति हूँ मेय (मापने में आने वाले)। मैं विदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

जो अपने प्रतिकूल हो, उसे दूसरों के प्रति भी करे—संक्षेप में यही धर्म है। इसके विपरीत जिसमें कामना से प्रवृत्ति होती है, वह तो अधर्म है।

वेदव्यास

कोई भीतरी महान् वस्तु ऐसी अवश्य है जिसके होने से मनुष्य को जितेंद्रियता प्राप्त होती है या प्राप्त करने की इच्छा होती है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

इस मानव जीवन और परतंत्रता को धिक्कार है जहाँ अपनी इच्छा के अनुसार प्राणों का परित्याग भी नहीं किया जा सकता।

वाल्मीकि

मुझे लोग पसंद करें, यह मैं कितना चाहता हूँ परंतु लोग मुझे चाहें, इसके लिए मैं करता क्या हूँ!

चार्ल्स लैंब

पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करती हैं।

कालिदास

एक तरफ़ निर्दयता में यह सदी बहुत बढ़ी हुई है, तो दूसरी तरफ़ न्याय की इच्छा में भी।

राममनोहर लोहिया

तू तिंदुक की जलती हुई लकड़ी के समान दो घड़ी के लिए भी प्रज्वलित हो जो (थोड़ी देर के लिए ही सही, शत्रु के सामने महान पराक्रम प्रकट कर) परंतु जीने की इच्छा से भूसी की ज्वालारहित आग के समान केवल धुआँ कर।

वेदव्यास

जो जितेंद्रिय नहीं हैं, उनके नेत्र उच्छृंखल इंद्रिय रूपी अश्वों द्वारा उठी धूल से भर जाते हैं।

बाणभट्ट

यह कुछ अजीब बात है कि जिन पत्रों को लिखने की हमारी सबसे ज़्यादा इच्छा रहती है, वे अक्सर देर में लिखे जाते है।

जवाहरलाल नेहरू

अभीष्ट वस्तु के लिए मन के स्थिर निश्चय को और नीचे की ओर जाने वाले जल के प्रवाह को कौन रोक सकता है?

कालिदास