आदत पर उद्धरण

अकेले स्वादिष्ट भोजन न करे, अकेले किसी विषय का निश्चय न करे, अकेले रास्ता न चले और बहुत से लोग सोए हों तो उनमें अकेला जागता न रहे।

जब मनुष्य आदत और उद्धरण के अनुरूप जीना शुरू कर देता है, तो वह जीना बंद कर देता है।

हम दूसरों को नहीं जानते। वे एक पहेली हैं। हम उन्हें नहीं जान सकते, ख़ासकर वे जो हमारे सबसे क़रीबी हैं; क्योंकि आदत हमें धुंधला कर देती है और उम्मीद हमें सचाई से अंधा कर देती है।

पढ़ना मेरी पहली एकमात्र बुरी आदत थी और उससे अन्य सब अवगुण आए। मैंने खाते वक़्त पढ़ा, मैंने शौचालय में पढ़ा, मैंने स्नानघर में पढ़ा। जब मुझे सोना चाहिए था, मैं पढ़ रही थी।

मानव-विकास नाम की कोई चीज़ नहीं है। उसे बस अपनी ख़ामियों की आदत हो जाती है, बस इतना ही है।

अपने दोष हम देखना नहीं चाहते हैं, दूसरों के देखने में हमें मज़ा आता है। बहुत दुःख तो इसी आदत में से पैदा होता है।

मानव के सभी कार्यों के कारणों में इन सात में से एक या अनेक होते हैं—संयोग, प्रकृति, विवशताएँ, आदत, तर्क, मनोभाव, इच्छा।

बिना किसी के गुण-दोष की ओर ध्यान दिए परोपकार करना सज्जनों का एक व्यसन ही होता है।

अन्याय करके पछताने की आदत बुरी नहीं है।
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हे श्रीकृष्ण! अपनी प्रीति रूपी कन्या मैंने तुमसे विवाहित कर दी है। अब आप इसे ज़बर्दस्ती अपने पास रखिए और यदि उसकी बुरी आदत हो तो छुड़वा दीजिए।

जब हम कुछ नया शुरू करते हैं, तो यह अक्सर असुविधाजनक होता है। हर नई आदत को अपनाना कठिन होता है। आप सोचते हैं कि अन्य लोग इसे कैसे करते हैं। कुछ बहुत ही आसान-सा लें, जैसे जल्दी जागना।

तीन आदतें लिखें जिन्हें आप बदलेंगे ताकि ये लक्ष्य आपकी वास्तविकता बन सकें।

सभ्यता, शिष्टाचार और ख़ुशामद में फ़र्क़ करने की आदत डालिए।

सदाचरण, सहयोग, एवं सनिश्चय—इन तीनों गुणों में सिद्ध होना दूत के लिए आवश्यक है।