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हम दूसरों को नहीं जानते। वे एक पहेली हैं। हम उन्हें नहीं जान सकते, ख़ासकर वे जो हमारे सबसे क़रीबी हैं; क्योंकि आदत हमें धुंधला कर देती है और उम्मीद हमें सचाई से अंधा कर देती है।
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पढ़ना मेरी पहली एकमात्र बुरी आदत थी और उससे अन्य सब अवगुण आए। मैंने खाते वक़्त पढ़ा, मैंने शौचालय में पढ़ा, मैंने स्नानघर में पढ़ा। जब मुझे सोना चाहिए था, मैं पढ़ रही थी।
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