प्रायश्चित पर उद्धरण
किसी दुष्कर्म या पाप
के फल भोग से बचने के लिए किए जाने वाले शास्त्र-विहित कर्म को प्रायश्चित कहा जाता है। प्रायश्चित की भावना में बहुधा ग्लानि की भावना का उत्प्रेरण कार्य करता है। जैन धर्म में आलोचना, प्रतिक्रणण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापना—नौ प्रकार के प्रायश्चितों का विधान किया गया है।
बहुत कम यादें पछतावे से अछूती होती हैं।
यादों का दूसरा नाम पछतावा।
किसी से कोई ज़्यादती नहीं करनी चाहिए। अगर हो जाए तो मुआफ़ी माँग लेनी चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि आदमी बिल्कुल संवेदनशून्य हो जाए।