स्त्री पर उद्धरण

स्त्री-विमर्श भारतीय

समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।

स्त्री के लिए प्रेम का अर्थ है कि कोई उसे प्रेम करे।

भुवनेश्वर

पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम में वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुँचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा।

प्रेमचंद

औरत जब लड़की में बदल जाए तो बिल्कुल चुप रहो। थक जाए, चुप हो जाए, तो मर्दों का बनाया सबसे झूठा वाक्य बोलो, आप तो ग़ुस्से में और सुंदर हो जाती हैं।

स्वदेश दीपक

स्त्रियों की कोमलता पुरुषों की काव्य-कल्पना है।

प्रेमचंद

ईर्ष्या से उन्मत स्त्री कुछ भी कर सकती है, उसकी आप शायद कल्पना भी नहीं कर सकते।

प्रेमचंद

स्त्री और पुरुष में मैं वही प्रेम चाहता हूँ, जो दो स्वाधीन व्यक्तियों में होता है। वह प्रेम नहीं, जिसका आधार पराधीनता है।

प्रेमचंद

पुरुष और स्त्री की आत्माएँ दो विभिन्न पदार्थों की बनी हैं।

भुवनेश्वर

स्त्रियों में बड़ा स्नेह होता है। पुरुषों की भांति उनकी मित्रता केवल पान-पत्ते तक ही समाप्त नहीं हो जाती।

प्रेमचंद

पुरुष जब बिस्तर में बेकार हो जाए, बेरोज़गार हो जाए, बीमार हो जाए तो पत्नी को सारे सच्चे-झूठे झगड़े याद आने लगते हैं। तब वह आततायी बन जाती है। उसके सर्पीले दाँत बाहर निकल आते हैं।

स्वदेश दीपक

स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।

जयशंकर प्रसाद

पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।

जयशंकर प्रसाद

परिहास में औरत अजेय होती है, ख़ासकर जब वह बूढ़ी हो।

प्रेमचंद

एक रमणीय स्त्री का सारा इतिहास प्रेम का इतिहास होता है।

स्वदेश दीपक

स्त्री उन पुरुषों के साथ फ़्लर्ट करती है, जो उससे विवाह नहीं करते और उस पुरुष के साथ विवाह करती है, जो उसके साथ फ़्लर्ट नहीं करता।

भुवनेश्वर

सुंदर औरत नादिरशाही होती है। एक-एक करके सब कुछ लूटती है।

स्वदेश दीपक

स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।

जयशंकर प्रसाद

स्त्री और सब कुछ भूल सकती है, परंतु विवाह के तत्काल बाद जो उसे एकांत-व्यवहार पति के द्वारा मिलता हे वह अमिट होता है।

श्रीनरेश मेहता

तानाशाह प्रेमिका एक प्रेमी से बहुत जल्द उकता जाती है। पालतू बनाने और निस्तेज करने के लिए उसे नया पुरुष चाहिए।

स्वदेश दीपक

तीन दिन के वासना-प्रवाह में स्त्री बह जाती है और तीन वर्ष के एकांगी प्रेम पर वह एकांत में हँसती है।

भुवनेश्वर

औरत एक छोटा-सा सुख तो देती है, लेकिन दुख बहुत लंबा देती है। प्रभुजी का बनाया विनाशकारी जीव। उसका घातक सौंदर्य पहले हमें बाँध लेता है, फिर सर्वनाश कर देता है।

स्वदेश दीपक

एक औरत बहुत सुंदर हो तो उससे प्रणय-याचना करनी चाहिए।

स्वदेश दीपक

नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।

जयशंकर प्रसाद

पुरुष नहीं जानता कि उसके मनुष्य बने रहने में ज्ञात-अज्ञात रूप से स्त्री का कितना बड़ा हाथ होता है।

श्रीनरेश मेहता

स्त्री का नब्बे प्रतिशत प्रच्छन्न रहता है।

श्रीनरेश मेहता

स्त्री तुमसे घृणा करेगी, यदि तुम उसकी प्रकृति को समझने का दावा करते हो।

भुवनेश्वर

एक बहुत ख़ूबसूरत औरत निर्दयी शक्तियों की मल्लिका होती है।

स्वदेश दीपक

पुरुष है कुतूहल प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान।

जयशंकर प्रसाद

स्त्रियों में शारीरिक सामर्थ्य हो, पर उनमें वह धैर्य और मिठास है जिस पर काल की दुश्चिंताओं का ज़रा भी असर नहीं होता।

प्रेमचंद

महिलाएँ रहस्य की बात करने में बहुत अभ्यस्त होती हैं।

प्रेमचंद

स्त्री के ज्ञानकोश में आमोद-प्रमोद का केवल एक अर्थ है; वह करना, जो उसे नहीं करना चाहिए।

भुवनेश्वर

स्त्री के पार्श्व में पहुँचकर पुरुष सबसे निरीह होता है।

श्रीनरेश मेहता

स्त्री की वासना पर विजय पा लेना सुगम है। तुम उसका प्रेम पाने के लिए जान खपा सकते हो, पर उसके बाद जो कुछ भी तुम स्त्री से पाते हो, उसकी वासना ही है।

भुवनेश्वर

सुंदर औरत कभी सलाह नहीं माँगती, बर्बाद करती है, नहीं तो हो जाती है।

स्वदेश दीपक

जब एक पुरुष एक स्त्री से प्रेम करता है, तो वह अपने समस्त पूर्व-प्रेमियों को ध्यान में रखती है, यदि उसमें और किसी भी भूतपूर्व प्रेमी में कुछ भी समानता है, तब उसकी सफलता की बहुत कम आशा है।

भुवनेश्वर

स्त्री एक पहेली है और उस पुरुष को घृणा करती है, जो वह पहेली बूझ सकता है।

भुवनेश्वर

विवाह करते समय स्त्री पुरुष की अच्छाई या बुराई का विश्लेषण नहीं करती, पर विवाह करने के तुरंत पश्चात ही वह उसे ‘अच्छा’ देखना चाहती है।

भुवनेश्वर

पुरुष और स्त्री की आत्माएँ दो विभिन्न पदार्थों की बनी हैं।

भुवनेश्वर

स्त्री आकाशकुसुम तोड़ ला सकती है, पर यह नहीं कह सकती है, ‘मैं अपराधी हूँ।’

भुवनेश्वर

स्त्री के लिए प्रेम का अर्थ है कि कोई उसे प्रेम करे।

भुवनेश्वर

स्त्री पुरुष से कहीं अधिक क्रूर है और इसलिए पुरुष से कहीं अधिक सहनशील होने का दावा कर सकती है।

भुवनेश्वर

स्त्री फ़ैशन की ग़ुलाम है। जिस समाज में पति को प्रेम करना फ़ैशन है, वहाँ वह सती भी हो सकती है।

भुवनेश्वर

‘पुरुष स्त्री को समझ ही नहीं सकता’ यह कहना निरर्थक है, क्योंकि उसे समझकर कोई भी पुरुष स्त्री के विषय में मुँह नहीं खोलता।

भुवनेश्वर

प्रत्येक स्त्री कहती है कि उसने कभी किसी को प्रेम नहीं किया, पर अमुक पुरुष उसको अत्यंत चाहता था। और वह यहाँ तक संपूर्ण है कि अपने ही असत्य पर विश्वास भी करती है।

भुवनेश्वर

स्त्री स्वतः अभिव्यक्त नहीं हो सकती, उसे माध्यम चाहिए; और ऐसा माध्यम पुरुष ही हो सकता है।

श्रीनरेश मेहता

तुम एक स्त्री को उसके प्रेम-वाक्यों की याद दिलाओगे जो प्रेम के प्रथम उफ़ान में उसने तुमसे कहे थे, वह बिगड़ जाएगी।

भुवनेश्वर

स्त्री जन्मजात अभिनेत्री होती है।

सुरेंद्र वर्मा

एक महान पुरुष यदि एक स्त्री के पीछे भागता है, तो इसमें स्त्री के लिए गर्व की कौन-सी बात है? वह उस स्त्री से वही चाहता है, जो उसे सहस्रों अन्य स्त्रियाँ दे सकती हैं।

भुवनेश्वर

एक पुरुष के लिए किसी स्त्री को क्षमा करना भावुकता है, एक स्त्री के लिए आँसुओं से उसका सबसे अच्छा सूट बिगाड़ देने के बाद यह कहना बहुत सहज है, ‘प्यारे, मैं पश्चाताप में मरी जा रही हूँ।’ हालाँकि जितनी हानि वह करना चाहती थी, कर चुकी।

भुवनेश्वर

स्त्री अपने हृदय से यह भावना कभी नहीं निकाल सकती कि एक पुरुष को प्रेम कर वह उसे आभारी बना रही है।

भुवनेश्वर

एक स्त्री एक कुमार के साथ अपना व्यभिचार स्वीकार कर लेगी, पर विवाहित पुरुष को वह सदैव बचाएगी—उसकी पत्नी के लिए।

भुवनेश्वर

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