स्त्री पर उद्धरण
स्त्री-विमर्श भारतीय
समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।
पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम में वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुँचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा।
औरत जब लड़की में बदल जाए तो बिल्कुल चुप रहो। थक जाए, चुप हो जाए, तो मर्दों का बनाया सबसे झूठा वाक्य बोलो, आप तो ग़ुस्से में और सुंदर हो जाती हैं।
स्त्री और पुरुष में मैं वही प्रेम चाहता हूँ, जो दो स्वाधीन व्यक्तियों में होता है। वह प्रेम नहीं, जिसका आधार पराधीनता है।
स्त्रियों में बड़ा स्नेह होता है। पुरुषों की भांति उनकी मित्रता केवल पान-पत्ते तक ही समाप्त नहीं हो जाती।
परिहास में औरत अजेय होती है, ख़ासकर जब वह बूढ़ी हो।
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संबंधित विषय : वृद्धावस्था
पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।
पुरुष जब बिस्तर में बेकार हो जाए, बेरोज़गार हो जाए, बीमार हो जाए तो पत्नी को सारे सच्चे-झूठे झगड़े याद आने लगते हैं। तब वह आततायी बन जाती है। उसके सर्पीले दाँत बाहर निकल आते हैं।
स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।
स्त्री उन पुरुषों के साथ फ़्लर्ट करती है, जो उससे विवाह नहीं करते और उस पुरुष के साथ विवाह करती है, जो उसके साथ फ़्लर्ट नहीं करता।
एक रमणीय स्त्री का सारा इतिहास प्रेम का इतिहास होता है।
सुंदर औरत नादिरशाही होती है। एक-एक करके सब कुछ लूटती है।
स्त्री और सब कुछ भूल सकती है, परंतु विवाह के तत्काल बाद जो उसे एकांत-व्यवहार पति के द्वारा मिलता हे वह अमिट होता है।
तानाशाह प्रेमिका एक प्रेमी से बहुत जल्द उकता जाती है। पालतू बनाने और निस्तेज करने के लिए उसे नया पुरुष चाहिए।
तीन दिन के वासना-प्रवाह में स्त्री बह जाती है और तीन वर्ष के एकांगी प्रेम पर वह एकांत में हँसती है।
स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।
स्त्री तुमसे घृणा करेगी, यदि तुम उसकी प्रकृति को समझने का दावा करते हो।
स्त्री आकाशकुसुम तोड़ ला सकती है, पर यह नहीं कह सकती है, ‘मैं अपराधी हूँ।’
एक औरत बहुत सुंदर हो तो उससे प्रणय-याचना करनी चाहिए।
औरत एक छोटा-सा सुख तो देती है, लेकिन दुख बहुत लंबा देती है। प्रभुजी का बनाया विनाशकारी जीव। उसका घातक सौंदर्य पहले हमें बाँध लेता है, फिर सर्वनाश कर देता है।
नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।
स्त्री की वासना पर विजय पा लेना सुगम है। तुम उसका प्रेम पाने के लिए जान खपा सकते हो, पर उसके बाद जो कुछ भी तुम स्त्री से पाते हो, उसकी वासना ही है।
पुरुष नहीं जानता कि उसके मनुष्य बने रहने में ज्ञात-अज्ञात रूप से स्त्री का कितना बड़ा हाथ होता है।
स्त्री का नब्बे प्रतिशत प्रच्छन्न रहता है।
स्त्री पुरुष से कहीं अधिक क्रूर है और इसलिए पुरुष से कहीं अधिक सहनशील होने का दावा कर सकती है।
एक बहुत ख़ूबसूरत औरत निर्दयी शक्तियों की मल्लिका होती है।
स्त्रियों में शारीरिक सामर्थ्य न हो, पर उनमें वह धैर्य और मिठास है जिस पर काल की दुश्चिंताओं का ज़रा भी असर नहीं होता।
विवाह करते समय स्त्री पुरुष की अच्छाई या बुराई का विश्लेषण नहीं करती, पर विवाह करने के तुरंत पश्चात ही वह उसे ‘अच्छा’ देखना चाहती है।
पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान।
सुंदर औरत कभी सलाह नहीं माँगती, बर्बाद करती है, नहीं तो हो जाती है।
जब एक पुरुष एक स्त्री से प्रेम करता है, तो वह अपने समस्त पूर्व-प्रेमियों को ध्यान में रखती है, यदि उसमें और किसी भी भूतपूर्व प्रेमी में कुछ भी समानता है, तब उसकी सफलता की बहुत कम आशा है।
स्त्री के ज्ञानकोश में आमोद-प्रमोद का केवल एक अर्थ है; वह करना, जो उसे नहीं करना चाहिए।
कभी कभी मैं जब किसी स्त्री पर क्रोधित हो उठता हूँ तब मैं उसके बारे में कोई अद्भुत या कोई भयानक चित्र बनाता हूँ।
स्त्री के पार्श्व में पहुँचकर पुरुष सबसे निरीह होता है।
प्रत्येक स्त्री कहती है कि उसने कभी किसी को प्रेम नहीं किया, पर अमुक पुरुष उसको अत्यंत चाहता था। और वह यहाँ तक संपूर्ण है कि अपने ही असत्य पर विश्वास भी करती है।
बहुत कम महिलाएं सही पुरुष का इंतजार करती हैं। ज्यादातर महिलाएँ पहले मिले और सबसे ख़राब पुरुष का चुनाव कर लेती हैं।
स्त्री फ़ैशन की ग़ुलाम है। जिस समाज में पति को प्रेम करना फ़ैशन है, वहाँ वह सती भी हो सकती है।
‘पुरुष स्त्री को समझ ही नहीं सकता’ यह कहना निरर्थक है, क्योंकि उसे समझकर कोई भी पुरुष स्त्री के विषय में मुँह नहीं खोलता।
बच्ची से कैसे कहा जाता है तू अब केवल स्त्री है। और अगर कह दिया जाता है ऐसा, तो फिर यह कैसे कहा जाता है कि यही वयस्कता तेरी स्वतंत्रता का हनन करती है। बच्ची! अब हम तेरी हर बात को बचपना मानकर उड़ा नहीं सकते। और स्त्री! तू कभी ऐसी स्त्री हो नहीं सकती कि अपने मन की कर सके। बच्ची-स्त्री, तू अपने को स्त्री जान; स्त्री-बच्ची, तू अपने को हमारी बच्ची-भर मान।
एक पुरुष के लिए किसी स्त्री को क्षमा करना भावुकता है, एक स्त्री के लिए आँसुओं से उसका सबसे अच्छा सूट बिगाड़ देने के बाद यह कहना बहुत सहज है, ‘प्यारे, मैं पश्चाताप में मरी जा रही हूँ।’ हालाँकि जितनी हानि वह करना चाहती थी, कर चुकी।
एक महान पुरुष यदि एक स्त्री के पीछे भागता है, तो इसमें स्त्री के लिए गर्व की कौन-सी बात है? वह उस स्त्री से वही चाहता है, जो उसे सहस्रों अन्य स्त्रियाँ दे सकती हैं।