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भर्तृहरि

570 AD - 651 AD | उज्जैन, मध्य प्रदेश

समादृत संस्कृति कवि और नीतिकार। 'शतकत्रय', 'वाक्यपदीय', 'महाभाष्यटीका', 'वाक्यपदीयवृत्ति', 'शब्दधातुसमीक्षा' जैसी कृतियों के रूप में योगदान।

समादृत संस्कृति कवि और नीतिकार। 'शतकत्रय', 'वाक्यपदीय', 'महाभाष्यटीका', 'वाक्यपदीयवृत्ति', 'शब्दधातुसमीक्षा' जैसी कृतियों के रूप में योगदान।

भर्तृहरि की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

हे राजन्! तुम पृथ्वी रूपी गाय को दुहना चाहते हो, तो प्रजा रूपी बछड़े का पालन-पोषण करो। यदि तुम प्रजा-रूपी बछड़े का पालन अच्छी तरह करोगे, तो पृथ्वी, स्वर्गीय कल्पलता की तरह, आपको नाना प्रकार के फल देगी।

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दुर्जन विद्वान हो तो भी उसे त्याग देना ही उचित है। क्या मणि से अलंकृत सर्प भयंकर नहीं होता है।

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