
अभ्यास के बिना साध्य की प्राप्ति हो, यह संभव नहीं है।

पहली नज़र को प्रेम मानकर समर्पण कर देना भी पागलपन है।

पहली नज़र को प्रेम मानकर समर्पण कर देना भी पागलपन है।

हर चीज़ के लिए समर्पित रहो, हृदय खोलो, ध्यान देकर सुनो।

पहले समर्पण करो और फिर देखो।

सत्, चित् और आनंद-ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले। विचार करने पर लोक में इस आनंद की दो अवस्थाएँ पाई जाएँगी—साधनावस्था और सिद्धावस्था।

कार्य-सिद्धि के उपायों में लगे रहने वाले भी असावधानी से अपने कार्यों को नष्ट कर देते हैं।

आदर्श की प्राप्ति समर्पण की पूर्णता पर निर्भर है।