
खाना और पढ़ना दो सुख हैं जो अद्भुत रूप से समान हैं।

ख़ुशी का पूरा आनंद लेने के लिए आपके पास इसे बाँटने वाला कोई होना चाहिए।

जितनी अधिक अस्पष्टता होगी, आनंद उतना ही अधिक होगा।

दुनिया को झपट्टा मार कर हमला करने और आनंद लेने के लिए बनाया गया है, और पीछे हटने के लिए कोई वजह नहीं है।


भविष्य चाहे जितना भी सुखद हो, उस पर विश्वास न करो, भूतकाल की भी चिंता न करो, हृदय में उत्साह भरकर और ईश्वर पर विश्वास कर वर्तमान में कर्मशील रहो।

सत्, चित् और आनंद-ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले। विचार करने पर लोक में इस आनंद की दो अवस्थाएँ पाई जाएँगी—साधनावस्था और सिद्धावस्था।

आत्म-संयम अर्थात् आत्मानुशासन ही कलात्मक सौंदर्य को सुंदर एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित और आनंददायक बनाता है।
-
संबंधित विषय : आत्म-अनुशासनऔर 3 अन्य

प्राकृतिक सौंदर्य के साथ अपने हृदय को एकाकार करना, मन को संयत करके, प्रकृति की भाषा समझने का प्रयास करना, कष्टसाध्य अवश्य है, परंतु सामान्य रूप में यदि कोई यह कर सके तो उसका हृदय आनंद से ओत-प्रोत हो जाएगा।

आनंद दिन पर शासन करता था और प्रेम, रात्रि पर।

हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो।

आनंद को दूसरों की आँखों से देखना कितना दुःखद है!

ऐसा क्यों है और ऐसा क्यों नहीं—इसका कारण न बताने वाली बात स्थायी रूप से आनंद नहीं दे सकती।

ओ आनंद की भावना! तुम कभी-कभी आती हो।

जिस आनंद में सभी सहभागी न हों, वह अपूर्ण है।