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बिमल मित्र

1912 - 1991 | पश्चिम बंगाल

बिमल मित्र की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

जन्म के बाद से मनुष्य लगातार मृत्यु की तरफ बढ़ता रहता है। बीच के ये दो दिन ही उसके कर्म के होते हैं। यह कर्म वह किस तरह करता है, इसी पर उसका मूल्यांकन किया जाता है।

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राजनीति से देश का कल्याण होगा, धर्म का डंका पीटने से भी कुछ होगा, अर्थनीति से भी अपनी कमी दूर होगी जन्मभूमि पर प्रेम हो—जीवंत प्रेम। वह प्रेम आत्मा, संपत्ति और संतान से भी बड़ा हो—जिस प्रेम से छोटे-बड़े सब को एक नज़र से देखा जा सके।

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