
हमारी पीढ़ी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है जब कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग को चुने, जो आहों, सिसकियों और जुदाई के बीच में गुज़रता है। यही मार्ग कर्म का मार्ग है।

सत्, चित् और आनंद-ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले। विचार करने पर लोक में इस आनंद की दो अवस्थाएँ पाई जाएँगी—साधनावस्था और सिद्धावस्था।

यह कहना कि जब सब करेंगे तब हम करेंगे, न करने का बहाना है। हमें ठीक लगता है, इसलिए हम करें, जब दूसरों को ठीक लगेगा, तब वे करेंगे —यही करने का मार्ग है।

जो ईश्वर के वाक्यों पर विश्वास करता है उसके लिए भगवान स्वयं पथ-प्रदर्शक बन कर आता है।

ज्ञान, उपासना और कर्म—ईश्वर प्राप्ति के तीन अलग मार्ग नहीं हैं, बल्कि ये तीनों मिलकर एक मार्ग हैं। उसके तीन भाग सुविधा के लिए कर दिए गए हैं।

हमें कठिनाइयों को मानना चाहिए, उनका विश्लेषण करना चाहिए और उनके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए। जगत में सीधे मार्ग कहीं नहीं हैं, हमें टेढ़े-मेढ़े मार्ग तय करने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा मुफ़्त में सफलता प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।
