
आस्था तर्क से परे की चीज़ है। जब चारों ओर अँधेरा ही दिखाई पड़ता है और मनुष्य की बुद्धि काम करना बंद कर देती है उस समय आस्था की ज्योति प्रखर रूप से चमकती है और हमारी मदद को आती है।

हृदय व आत्मा से शून्य बुद्धि व शरीर केवल हड्डियों का एक ढाँचा है। कोरी बुद्धि और तर्क से हम सृष्टि के रहस्यों को नहीं समझ सकते।

जिस प्रकार शरीर में दृष्टि है, उसी प्रकार आत्मा में तर्क है।

किसी लकीर को मिटाए बिना छोटी बना देने का उपाय है, बड़ी लकीर खींच देना। क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है।

मेरे पास नारी-तर्क के अतिरिक्त कोई अन्य तर्क नहीं है अर्थात् यह कि मैं उसे ऐसा मानती हूँ। क्योंकि मैं उसे ऐसा मानती हूँ।

सशक्त तर्क सशक्त कार्यों के जनक हैं।