
तर्क और आस्था की लड़ाई हो रही थी और कहने की ज़रूरत नहीं कि आस्था तर्क को दबाए दे रही थी।

धर्म की आड़ में क्रियाशील उद्दाम विलास की वह हीन साधना जटिल कर्मकाण्ड से जुड़ी थी।

सौंदर्य पर निष्ठा, सोये सौंदर्य को जगाने के लिए सूर्योदय है।

मेरे ऊपर का तारों भरा आकाश और मेरे भीतर के नैतिक नियम—ये दो चीज़ें मन को अनंत विस्मय और श्रद्धा से भर देती हैं।

सत्य, आस्था और लगन जीवन-सिद्धि के मूल हैं।

भय की पूरी समस्या को समझने में ही आपके सारे विश्वास विदा हो जाते हैं।


साधन को जब साध्य समझने की भूल की गयी तब साध्य तो दूरस्थ हो ही गया, साधन की भी महत्ता घट गई।

जहाँ भय है वहीं विश्वास का जन्म होता है।


विश्वास वस्तुतः विभाजन का एक रूप है, अतः यह एक प्रकार की हिंसा है।

सबसे ज़रूरी है कि वे स्वयं पर विश्वास करें। बच्चों की तरह असहाय बने रहें, क्योंकि दुर्बलता महान् है और शक्ति कुछ भी नहीं।

परमेश्वरपर विश्वास रखनेवाला यह मानता है कि जिस वस्तु की जब पूरी आवश्यकता होगी तब वह अवश्य प्राप्त हो जाएगी, इसलिए वह किसी संग्रह करने के फेर में नहीं पड़ता।

मैं गाय की भक्ति और पूजा में किसी से पीछे नहीं हूँ; लेकिन वह भक्ति और श्रद्धा, क़ानून के ज़रिए किसी पर लादी नहीं जा सकती।

जो ईश्वर को अपने पास समझता है, वह कभी नहीं हारता।