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पॉलो फ़्रेरा

1921 - 1997 | रियो डी जनेरियो

पॉलो फ़्रेरा की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 12

वामपंथी से संकीर्णतावादी बना व्यक्ति, द्वंद्वात्मक ढंग से यथार्थ और इतिहास की व्याख्या करने के प्रयास में पूरी तरह भटक जाता है, और पतित होकर सारतः भाग्यवादी दृष्टिकोण अपना लेता है।

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आमूल-परिवर्तनवादी कभी आत्मपरकतावादी नहीं होता।

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संकीर्णतावाद मिथक गढ़ता है और उससे अलगाव पैदा करता है। आमूल-परिवर्तनवाद आलोचनात्मक होता है, इसलिए मुक्त बनाता है।

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उत्पीड़ितों की कमज़ोरी का आदर करते हुए; उत्पीड़कों की सत्ता को नरम बनाने का कोई भी प्रयास, प्रायः हमेशा ही एक मिथ्या उदारता के रूप में सामने आता है।

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दक्षिणपंथी संकीर्णतावादी के लिए अतीत से जुड़ा हुआ 'आज' एक प्रदत्त और अपरिवर्तनीय-सी चीज़ होता है, जबकि वामपंथी संकीर्णतावादी के लिए 'आने वाला कल' पहले से ही नियत होता है—अटल रूप से पूर्वनिर्धारित होता है। ऐसे दक्षिणपंथी और ऐसे वामपंथी, दोनों प्रतिक्रियावादी होते हैं; क्योंकि इतिहास की अपनी-अपनी मिथ्या दृष्टि से चल कर दोनों कर्म के ऐसे रूप विकसित करते हैं, जिससे स्वतंत्रता का निषेध होता है।

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