सफलता पर उद्धरण
सफलता-असफलता जीवन-प्रसंगों
से संबद्ध एक प्रमुख विषय है। समाज ने सफलता-असफलता के कई मानदंड तय कर रखे हैं जो इहलौकिक भी हैं और आध्यात्मिक-दार्शनिक भी। कविताओं में भी इस विषय पर पर्याप्त अभिव्यक्तियाँ पाई जाती हैं।
अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।
जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।
जो भी अपनी भूमि पर अँगूठे के बल खड़ा हो जाता है, वट-वृक्ष हो जाता है।
सफल होना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिए केवल संभव है—होना।
मैं बाद अज़मर्ग कामयाबी का मुरीद हूँ।
शिखरों की ऊँचाई कर्म की नीचता का परिहार नहीं करती।
मंच का मोह मुझे नहीं, भय है। इस भय ने मुझे कई प्रलोभनों से बचाया है।
नाम का नशा नुक़सानदेह।
युद्ध सफलता से तभी लड़ा जा सकता है जब उसका सही कारण जनता को मालूम न हो।
मुझे कामयाबी से बेईमानी की बू आती रहती है।