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सफलता पर उद्धरण

सफलता-असफलता जीवन-प्रसंगों

से संबद्ध एक प्रमुख विषय है। समाज ने सफलता-असफलता के कई मानदंड तय कर रखे हैं जो इहलौकिक भी हैं और आध्यात्मिक-दार्शनिक भी। कविताओं में भी इस विषय पर पर्याप्त अभिव्यक्तियाँ पाई जाती हैं।

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

श्रीकांत वर्मा

सारी संभावनाएँ स्थापित होने पर ख़त्म हो जाती हैं।

ऋतुराज

जो भी अपनी भूमि पर अँगूठे के बल खड़ा हो जाता है, वट-वृक्ष हो जाता है।

श्री नरेश मेहता

सफल होना मेरे लिए संभव नहीं है। मेरे लिए केवल संभव है—होना।

राजकमल चौधरी

मैं बाद अज़मर्ग कामयाबी का मुरीद हूँ।

कृष्ण बलदेव वैद

शिखरों की ऊँचाई कर्म की नीचता का परिहार नहीं करती।

धर्मवीर भारती

मंच का मोह मुझे नहीं, भय है। इस भय ने मुझे कई प्रलोभनों से बचाया है।

कृष्ण बलदेव वैद
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नाम का नशा नुक़सानदेह।

कृष्ण बलदेव वैद
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युद्ध सफलता से तभी लड़ा जा सकता है जब उसका सही कारण जनता को मालूम हो।

हरिशंकर परसाई

मुझे कामयाबी से बेईमानी की बू आती रहती है।

कृष्ण बलदेव वैद

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