सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं।
सत्य कभी भी दयावान नहीं होता। हम कहाँ चुन सकते हैं अपना भाग्य।
यह मानने का जी नहीं करता कि उसने हम कीड़े-मकोड़ों में से एक-एक का पूरा जीवन-चरित ख़ुद गढ़ा है। मुझे लगता है कि एक विशिष्ट ढंग से उसने फेंक दिया है हमें कि मंडराओ और टकराओ आपस में। समग्र पैटर्न तो वह जानता है, एक-एक कण की नियति नहीं जानता। क़समिया तौर पर वह ख़ुद नहीं कह सकता कि इस समय कौन कण कहाँ, किस गति से, क्या करने वाला है। नियतियों के औसत वह जानता है, किसी एक की नियति नहीं।
सारे वृत्त एक-दूसरे को काटने के लिए ही जन्म लेते हैं।
निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता।