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शूद्रक

संस्कृत के समादृत नाटककार। 'मृच्छकटिकम्', 'वीणावासवदत्ता' और 'पद्मप्रभृत्तकम्' नाट्य-कृतियों के लिए उल्लेखनीय।

संस्कृत के समादृत नाटककार। 'मृच्छकटिकम्', 'वीणावासवदत्ता' और 'पद्मप्रभृत्तकम्' नाट्य-कृतियों के लिए उल्लेखनीय।

शूद्रक की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 14

घोर अंधकार में जिस प्रकार दीपक का प्रकाश सुशोभित होता है उसी प्रकार दुःख का अनुभव कर लेने पर सुख का आगमन आनंदप्रद होता है किंतु जो मनुष्य सुख भोग लेने के पश्चात् निर्धन होता है वह शरीर धारण करते हुए भी मृतक के समान जीवित रहता है।

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पुरुषों को देखकर उसके पास धरोहर रखी जाती है, घरों को देखकर नहीं।

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भाग्यक्रम से धन आता और जाता है।

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मरने में अल्प दुख है किंतु दरिद्रता से अनन्त दुख होता है।

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किसका धन चंचल नहीं है?

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