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समय पर उद्धरण

समय अनुभव का सातत्य

है, जिसमें घटनाएँ भविष्य से वर्तमान में गुज़रती हुई भूत की ओर गमन करती हैं। धर्म, दर्शन और विज्ञान में समय प्रमुख अध्ययन का विषय रहा है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड के लगातार सृजन, विनाश और पुनर्सृजन के कालचक्र से गुज़रते रहने की परिकल्पना की गई है। प्रस्तुत चयन में समय विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

‘तत्काल’ के सिवा और कोई काल चिंतनीय नहीं है।

राजकमल चौधरी

समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती हैं।

जयशंकर प्रसाद

जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।

अशोक वाजपेयी
  • संबंधित विषय : कवि

जिस तरह से तुम डॉलर और सेंट्स की माप करते हो उसी तरह से तुम समय को दिनों में माप नहीं सकते, क्योंकी डॉलर हर दिन एक जैसे होते हैं लेकिन हर दिन अलग होता है, हर पल अलग।

होर्खे लुई बोर्खेस

पीते वक़्त भी निपट अकेला होता हूँ, लिखते वक़्त भी।

कृष्ण बलदेव वैद

हर वक़्त रिश्तेदारों और बच्चों के लिए तड़पने वाले बूढ़े सुखी नहीं होते।

कृष्ण बलदेव वैद

विचार और कलात्मकता के संतुलन पर ही आधुनिक कवि की सफलता या असफलता, शक्ति या दुर्बलता निर्भर करती है।

ऋतुराज
  • संबंधित विषय : कवि

अनंत के सापेक्ष में समय की संज्ञा, काल है तथा देश के सापेक्ष में काल की संज्ञा, समय है।

श्रीनरेश मेहता

समय या इतिहास में लौटना एक सैद्धांतिक संभावना तो है ही और समर्थ रचनाकारों के हाथों में यह एक सशक्त हथियार रहा है।

विष्णु खरे

सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता।

श्रीनरेश मेहता

वास्तविकता वास्तविक नहीं है!

नवीन सागर

वर्तमान ही मेरे शरीर का एकमात्र प्रवेश-द्वार है।

राजकमल चौधरी
  • संबंधित विषय : देह

यथार्थ का दर्पण जिस प्रकार जगत की बाह्य परिस्थितियाँ हैं, उसी प्रकार आदर्श का दर्पण मनुष्य के भीतर का मन है।

सुमित्रानंदन पंत

अतियथार्थ और अयथार्थ भी दरअसल यथार्थ हैं।

मंगलेश डबराल

यह सापेक्ष समय जब बीतता है तो हमें वैसे ही तराशता चलता है जैसे कि जल अपनी मसृणता में भी, कैसी ही चट्टान क्यों हो, शताब्दियों तक टकराते-टकराते अंततः ढहा कर रख देता है।

श्रीनरेश मेहता

लिखते समय सारा समय ही बहुत कम है, क्योंकि सड़कें अंतहीन लंबी हैं और रास्ते से कभी भी भटका जा सकता है।

ज्ञानरंजन

मैं ऐसा मानता हूँ कि जैसे जैसे समय बीतेगा हम एक ऐसे मक़ाम पर पहुँच चुके होंगे जहाँ हम सरकार से मुक्ति पा चुके होंगे।

होर्खे लुई बोर्खेस

यथार्थ! यह संसार का सबसे कठिन शब्द है। करोड़ों जीवन यथार्थ को समझते-समझाते बीत गए।

मंगलेश डबराल

जब समय ही अपरिमेय है; तब काल और महाकाल क्या हैं, यह कोई नहीं जानता।

श्रीनरेश मेहता

घड़ी नहीं थी। पर निरंतरता का बोध था। आकाश का होना निरंतर था। आकाश स्थिर पर उसका होना लगातार। स्थिर झरने में लगातार गिरते हुए पानी की निरंतरता।

विनोद कुमार शुक्ल

समय, समय ही से बना है और प्रत्येक वर्तमान जिसमें कुछ कुछ घटता है वह भी(समय से ही बना है)..इसलिए कहीं कोई अनुक्रम नहीं है।

होर्खे लुई बोर्खेस

समय बीत नहीं रहा था वह एक चक्कर में घूम रहा था।

गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेस

भोक्ता के लिए सारी व्याख्याएँ समय जैसी हो जाती हैं।

श्रीनरेश मेहता

नष्टकर्ता, नष्ट होने वाला तथा इस क्रिया का साक्षी भी केवल तत्त्व ही है।

श्रीनरेश मेहता

समय वह पदार्थ है जिससे मैं बना हूँ। समय कोई नदी है जो मुझे साथ बहाती है, लेकिन मैं ही नदी हूँ, शेर मेरा विनाश करता है, लेकिन मैं ही शेर हूँ; अग्नि मुझे भस्म करती है, लेकिन मैं ही अग्नि हूँ। संसार, दुर्भाग्यवश, वास्तविक है; मैं, दुर्भाग्यवश, बोर्खेज़ हूँ।

होर्खे लुई बोर्खेस

बीतने मात्र का क्रियापद है—समय।

श्रीनरेश मेहता

क्षितिज तक समय है, परंतु क्षितिज के बाहर काल है।

श्रीनरेश मेहता

समय के सिवा कोई इस लायक़ नहीं होता कि उसे किसी कहानी का हीरो बनाया जाए।

राही मासूम रज़ा

जो कोई भी उसका उपयोग करेगा, उसके लिए समय काफ़ी लंबा रहता है।

लियोनार्डो दा विंची

अभिनंदन में और रचनावली प्रकाशित करने में कभी इसलिए भी जल्दी की जाती है कि लेखक बीमार रहने लगा है—न जाने कब टें बोल जाए। इसलिए समय रहते, इसका कुछ कर डालो।

हरिशंकर परसाई

निरंतरता समय का गोत्र है जैसे भारद्वाज गोत्र होता है।

विनोद कुमार शुक्ल

उपेक्षित उपस्थिति होने से आदमी को अदृश्य होने में समय नहीं लगता।

विनोद कुमार शुक्ल

समय एक विह्वल नदी है, जो हमें अस्तित्व की धाराओं के बीच से ले जाती है।

यून फ़ुस्से

समय के बीतते जाने का मतलब, आनेवाला समय बीत जाएगा। यदि किसी के पास घड़ी नहीं तो क्या हुआ!

विनोद कुमार शुक्ल

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