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किशनचंद 'बेवस'

- 1947

समादृत सिंधी कवि-लेखक। 'शीरीं शीर' और 'गंगाजूँ लहरू' कृतियों लिए उल्लेखनीय।

समादृत सिंधी कवि-लेखक। 'शीरीं शीर' और 'गंगाजूँ लहरू' कृतियों लिए उल्लेखनीय।

किशनचंद 'बेवस' की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 13

जब सच्चाई पर नवीनता का रंग चढ़ता है, उस समय मानो सोने की अंगूठी में कोई हीरा जड़ देता है। कला वही है जो नमूने में नई गठन गढ़ दे, परंतु वाणी में भी प्राचीनता का पाठ पढ़ाए।

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मेरा घर भी वहीं है जहाँ पीड़ा का निवास है। जहाँ-जहाँ दुःख विद्यमान है वहाँ-वहाँ मैं विचरता हूँ।

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तुम्हारे इन अट्टहासों के कारण हज़ारों आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।

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तंग मज़हबों में सीमित हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।

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यदि तुम्हारे पास धन हैं, तो निर्धनों को बाँट दो। यदि धन पर्याप्त नही है तो मन की भेंट दो। यदि मन ठोक नहीं है तो तन अर्पित करो। यदि तन भी स्वस्थ नहीं है तो मीठे वचन ही बोलो। परंतु तुम्हें कुछ कुछ देना ही है और परोपकार के लिए अवश्य ही स्वयं को न्यौछावर करना है।

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