दिल पर उद्धरण
कवियों-शाइरों के घर
दिल या हृदय एक प्रिय शब्द की तरह विचरता है, जहाँ दिल की बातें और दिल के बारे में बातें उनकी कविताई में दर्ज होती रहती हैं। यह चयन दिल पर ज़ोर रखती ऐसी ही कविताओं में से किया गया है।
मनुष्य का हृदय समंदर जैसा है, इसमें तूफ़ान है, लहरें हैं और इसकी गहराई में मोती भी है।
सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने हृदय में डुबा नहीं सकता।
हृदय की स्मृति बुराई को दूर करती है और अच्छाई को बढ़ाती है।
ह्रदय के लिए अतीत एक मुक्ति-लोक है जहाँ वह अनेक प्रकार के बंधनों से छूटा रहता है और अपने शुद्ध रूप में विचरता है।
इस वक्षस्थल में दो ह्रदय हैं क्या? जब अतरंग ‘हाँ’ करना चाहता है, तब ऊपरी मन ‘ना’ क्यों कहता है?
लज्जा प्रकाश ग्रहण करने में नहीं होती, अंधानुकरण में होती है। अविवेकपूर्ण ढंग से जो भी सामने पड़ गया उसे सिर-माथे चढ़ा लेना, अंध-भाव से अनुकरण करना, जातिगत हीनता का परिणाम है। जहाँ मनुष्य विवेक को ताक़ पर रखकर सब कुछ की अंध भाव से नक़ल करता है, वहाँ उसका मानसिक दैन्य और सांस्कृतिक दारिद्र्य प्रकट होता है, किंतु जहाँ वह सोच-समझकर ग्रहण करता है और अपनी त्रुटियों को कम करने का प्रयत्न करता है, वहाँ वह अपने जीवंत स्वभाव का परिचय देता है।