
जहाँ कोई क़ानून नहीं होता, वहाँ अंतःकरण होता है।

शांति को चाहो। लेकिन ध्यान रहे कि उसे तुम अपने ही भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। शांति कोई बाह्य वस्तु नहीं है।

न तो हमारे अंतःकरण से अधिक भयंकर कोई साक्षी हो सकता है और न कोई दोषारोपण करने वाला इतना शक्तिशाली।
-
संबंधित विषय : आत्मविश्वासऔर 1 अन्य

तुम्हारे पास क्या है; उससे नहीं, वरन् तुम क्या हो उससे ही तुम्हारी पहचान है।

सच्चे संवाद के लिए अक्षमता का अर्थ है—सहिष्णुता, आत्म-चिंतन और सहानुभूति की अक्षमता।

अपने अंतरतम की गहराइयों में इस प्रश्न को गूँजने दो: 'मैं कौन हूँ?' जब प्राणों की पूरी शक्ति से कोई पूछता है, तो उसे अवश्य ही उत्तर उपलब्ध होता है।

"मैं कौन हूँ?" जो स्वयं इन प्रश्न को नहीं पूछता है, ज्ञान के द्वार उसके लिए बंद ही रह जाते हैं।

बुद्धत्व का आगमन दूसरे द्वारा नहीं होता, इसका आगमन स्वयं आपके अवलोकन एवं स्वयं की समझ से ही होता है।

आप बिना किसी पुस्तक को पढ़े या बिना साधु—संतों और विद्वानों को सुने अपने मन का अवलोकन कर सकते हैं।
-
संबंधित विषय : आत्म-अनुशासनऔर 2 अन्य

बुद्धत्व का आगमन किसी नेता या गुरु द्वारा नहीं होता, आपके भीतर जो कुछ है उसकी समझ द्वारा ही इसका आगमन होता है।
-
संबंधित विषय : आत्म-सम्मानऔर 2 अन्य

हे मूढ़! व्रतधारण और साज-सज्जा कर्तव्य कर्म नहीं है। न ही मात्र काया की रक्षा कर्तव्य कर्म है। भोले मानव! देह की सार-संभाल ही कर्तव्य कर्म नहीं। सहज विचार (आत्म-तत्त्वचिंतन) वास्तविक उपदेश है।

कभी-कभी जिसे हम कठिन समय के रूप में मानते हैं, वह वास्तव में हमारी छिपी हुई ताकतों को खोजने का अवसर होता है।

तुम जो चुनते हो, तुम वही बन जाते हो।

मैं महसूस करता हूँ कि मैं शून्य हूँ और इसका मतलब है मैं अपने आप को निश्चय ही प्यार करता हूँ।