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दान पर उद्धरण

यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और निर्लोभता—ये धर्म के आठ प्रकार के मार्ग बताए गए हैं। इनमें से पहले चारों का तो कोई दंभ के लिए भी सेवन कर सकता है, परंतु अंतिम चार तो जो महात्मा नहीं है, उनमें रह ही नहीं सकते।

वेदव्यास

हे भारत! धर्म, अर्थ, भय, कामना तथा करुणा से दिया गया दान पाँच प्रकार का जानना चाहिए।

वेदव्यास

दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं।

थॉमस एडिसन

मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अद्रोह, अनुग्रह और दान—यह सज्जनों का सनातन धर्म है।

वेदव्यास

प्रत्युपकार की आशा से, फलभोग की इच्छा से तथा बड़े कष्ट से जो दान दिया जाता है उसे राजस दान कहते हैं।

वेदव्यास

सच्चा दानी प्रसिद्धि का अभिलाषी नहीं होता।

प्रेमचंद
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दान देना अपना कर्त्तव्य है, ऐसे भाव से जो दान देश, काल और पात्र के प्राप्त होने पर प्रत्युपकार करने वाले के लिए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान है।

वेदव्यास
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सच्चा दान दो प्रकार का होता है—एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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दुःखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।

संत तुकाराम

हम भी दान देते हैं, कर्म करते हैं। लेकिन जानते हो क्यों? केवल अपने बराबर वालों को नीचा दिखाने के लिए। हमारा दान और धर्म कोरा अहंकार है, विशुद्ध अहंकार।

प्रेमचंद

धर्मात्मा पुरुष को चाहिए कि वह यश के लोभ से, भय के कारण अथवा अपना उपकार करने वाले को दान दे।

वेदव्यास

अभय, अन्तःकरण की शुद्धता, ज्ञान मार्ग और योग मार्ग में विशेष स्थिति, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, चुग़ली करना, भूतों पर दया, अलोलुपता, मृदुता, लज्जा, चंचलता का होना, तेजस्विता, क्षमा, धृति, पवित्रता, द्रोह का अभाव, निरभिमानता, ये लज्ञण, दैवी संपत्ति लेकर उत्पन्न हुए मनुष्य में होते हैं।

वेदव्यास

यद्यपि दानशीलता और अभिमान के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी दोनों ग़रीबों का पोषण करते हैं।

थॉमस फ़ुलर

प्रत्येक भारतवासी का यह भी कर्त्तव्य है कि वह ऐसा समझे कि अपने और अपने परिवार के खाने-पहनने भर के लिए कमा लिया तो सब कुछ कर लिया। उसे अपने समाज के कल्याण के लिए दिल खोलकर दान देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

महात्मा गांधी

धर्म का फल शीघ्र दिखाई दे तो इस कारण धर्म और देवताओं पर शंका नहीं करनी चाहिए। दोषदृष्टि रखते हुए प्रयत्नपूर्वक यज्ञ और दान करते रहना चाहिए।

वेदव्यास

जो दान बिना सत्कार किए अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में कुपात्रों के लिए दिया जाता है, वह तामस दान कहा जाता है।

वेदव्यास

तुम प्राय: कहते हो, 'मैं दान दूँगा, किंतु सुपात्र को ही।' तुम्हारी वाटिका के वृक्ष ऐसा नहीं कहते, तुम्हारे चरागाह की भेड़ें।

वे देते हैं, ताकि जी सकें, क्योंकि रखे रहना ही मृत्यु है।

खलील जिब्रान

जो कुछ तुम्हारे पास है, सब एक दिन दिया ही जाएगा।

इसीलिए अभी दे डालो, ताकि दान देने का मुहूर्त्त तुम्हारे वारिसों को नहीं, तुम्हें ही प्राप्त हो जाए।

खलील जिब्रान