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वेद पर उद्धरण

वेद और लोक, इन दोनों के बीच संवाद के द्वारा भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। कभी तनाव भी रहा है, द्वन्द भी रहा है लेकिन चाहे वह द्वन्द हो, चाहे वह तनाव हो—इन सबके साथ बराबर एक संवाद बना रहा हैं।

नामवर सिंह

आर्य संस्कृति और आर्यों में ‘ऋग्वेद’ का प्रमुख देवता इन्द्र था। यद्यपि ब्रह्मा, विष्णु, महेश—तीनों का नाम लिया जाता है। ब्रह्मा की महिमा धीरे-धीरे घटती गई। इन्द्र की महिमा घटती गई और कृष्ण आते गए। इसका मूल स्रोत कहीं लोकजीवन से जोड़कर देखना चाहिए।

नामवर सिंह

इस देश की परंपरा रही है कि लोक और शास्त्र, लगातार संवाद करते रहे हैं।

नामवर सिंह

धर्मशास्त्रों तथा उनके द्वारा स्थापित मर्यादा को आगम कहते हैं। उन धर्मशास्त्रों तथा उनके द्वारा स्थापित लोकमर्यादा के आचरण के अतिक्रमण से आगमविरोधी दोष होता है।

भामह

सभी शास्त्रों का विरोध करने वाली प्रतिज्ञा सर्वागमविरोधिनी प्रतिज्ञा कहलाती है। यथा, शरीर पवित्र है, प्रमाण तीन हैं अथवा प्रमाण हैं ही नहीं।

भामह

स्नान करने, दान देने, शास्त्र पढ़ने, वेदाध्ययन करने को तप नहीं कहते। तप योग ही है और यज्ञ करना। तप का अर्थ है वासना को छोड़ना, जिसमें काम-क्रोध का संसर्ग छूटता है।

संत एकनाथ

प्राचीन ग्रंथों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि शब्द और यथार्थ के तात्कालिक संबंध को ऐतिहासिक दृष्टि से समझा जाए।

विजयदान देथा

कृतघ्न को यश कैसे प्राप्त हो सकता है? उसे कैसे स्थान और सुख की उपलब्धि हो सकती है? कृतघ्न विश्वास के योग्य नहीं होता। कृतघ्न के उद्धार के लिए शास्त्रों में कोई प्रायश्चित नहीं बताया गया है।

वेदव्यास

वेद से बड़ा शास्त्र नहीं है, माता के समान गुरु नहीं है, धर्म से बड़ा लाभ नहीं है तथा उपासना से बड़ी तपस्या नहीं है।

वेदव्यास

जीवन के सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की जो कला या युक्ति है, उसी को 'योग' कहते हैं। सांख्य का अर्थ है— 'सिद्धांत' अथवा 'शास्त्र' और 'योग' का अर्थ है 'कला'।

विनोबा भावे

शास्त्र कटु औषधि के समान अविद्यारूप व्याधि का नाश करता है। काव्य आनंददायक अमृत के समान अज्ञान रूप रोग का नाश करता है।

कुंतक

कवि का वेदांत-ज्ञान, जब अनुभूतियों से रूप, कल्पना से रंग और भावजगत से सौंदर्य पाकर साकार होता है, तब उसके सत्य में जीवन का स्पंदन रहेगा, बुद्धि की तर्क-श्रृंखला नहीं। ऐसी स्थिति में उसका पूर्ण परिचय अद्वैत दे सकेगा और विशिष्टाद्वैत।

महादेवी वर्मा

वेदों में प्राकृतिक उपकरणों को ही को ‘देव’ माना गया है और उनकी स्तुति की गई है।

विजयदान देथा

हरि कथा तो भगवान्, भक्त और नाम का त्रिवेणी-संगम है।

संत तुकाराम

भारतीय शब्दावली में धर्म एक ऐसा शब्द है, जिससे हमको पग-पग पर काम पड़ता है। ऋग्वेद से लेकर आज तक इस शब्द की चार हज़ार वर्ष लंबी आयु है।

वासुदेवशरण अग्रवाल

वेदांत ‘ब्रह्म-जिज्ञासा’ है तो काव्य ‘पुरूष-जिज्ञासा।’

कुबेरनाथ राय

कवि जिस ग्रंथ की रचना करता है उसके सब अर्थों की कल्पना नहीं कर लेता है। काव्य की यही ख़ूबी है कि वह कवि से भी बढ़ जाता है।

महात्मा गांधी

काव्य के स्वादिष्ट रसों में मिश्रित कर शास्त्र का भी उपयोग किया जाता है। पहले मधु का स्वाद लेने वाले कटुभेषज भी पी जाते हैं।

भामह

दान, दक्षता, शास्त्र ज्ञान, शौर्य, लज्जा, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनय, श्री, धृति, तुष्टि और पुष्टि—ये सभी सद्गुण भगवान श्री कृष्ण में नित्य विद्यमान हैं।

वेदव्यास

वेद शास्त्रों में कहा है कि जिसका मूल अव्यक्त है, जो अनादि है, जिसकी चार त्वचाएँ, छः तने, पचीस शाखाएँ, अनेक पत्ते और बहुत से फूल हैं, जिनमें कड़ुवे और मीठे दो प्रकार के फल लगे हैं, जिस पर एक ही बेल है, जो उसी के आश्रित रहती है, जिसमें नित्य नए पत्ते और फूल निकलते रहते हैं, ऐसे संसार-वृक्ष स्वरूप आपको हम नमस्कार करते हैं।

तुलसीदास

मैंने 'बाइबिल' को समझने का प्रयत्न किया है। मैं उसे अपने धर्मशास्त्र में गिनता हूँ। मेरे हृदय पर जितना अधिकार 'भगवद्गीता' का है, उतना ही अधिकार 'सरमन आन माउंट' का भी है। ‘लीड काइंडली लाइट' तथा अन्य अनेक प्रेरणा-स्फूर्त्त प्रार्थना-गीत मैं किसी ईसाईधर्मावलंबी से कम भक्ति के साथ नहीं गाता हूँ।

महात्मा गांधी

श्रीकृष्ण का लोकरक्षक और लोकरंजक रूप गीता में और भागवत पुराण में स्फुरित है। पर धीरे-धीरे वह स्वरूप आवृत्त होता गया है और प्रेम का आलंबन मधुर रूप ही शेष रह गया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

अन्य बहुत से शास्त्रों का संग्रह करने की क्या आवश्यकता है? गीता का ही अच्छी तरह से गान करना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान् के मुख कमल से निकली हुई है।

वेदव्यास

शास्त्रों का यानी वेद का निचोड़ इतना ही है कि ईश्वर है और वह एक ही है। कुरान का और बाइबिल का भी यही निचोड़ है।

महात्मा गांधी

योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है और शास्त्र के ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना जाता है तथा कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है। अतः हे अर्जुन! तू योगी हो।

वेदव्यास

उपस्थित वस्तु की अनुकृति अथवा प्रतिबिंब हू-ब-हू नक़ल आदि में ही जो लोग कला को बंद कर उसे स्मृति और कल्पना से काट देना चाहते हैं, वे शास्त्रकार तो हैं किंतु उनकी बात सुनने में ही विपत्ति है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
  • संबंधित विषय : कला

वेद में जो बातें बताई हैं; वे धर्म का निचोड़ हैं और धर्म मनुष्य-प्राणी के धर्म के साथ-साथ पैदा हुआ है, इसलिए वेद अनादि हैं।

महात्मा गांधी

लोक तो वेद के आगे-आगे चलता है और इसी से पंचांग की घोषित तिथि से पंद्रह दिन पहले ही लोक-मानस मान लेता है कि संवत्सर बदल गया।

कुबेरनाथ राय
  • संबंधित विषय : लोक

भरत मुनि ने जब 'नाट्यशास्त्र' लिखा तो 'नाट्यशास्त्र' को उन्होंने पंचम् वेद कहा; अर्थात् चार वेदों की परम्परा में एक नये वेद की आवश्यकता है। उस नए वेद की घोषणा के साथ इस देश का जन-समुदाय एक नए परिवर्तन की, एक नई क्रांति की सूचना देता है।

नामवर सिंह

क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है तथा क्षमा शास्त्र है।

वेदव्यास

जो प्रेम ‘लोक और वेद’, दोनों के प्रलोभनों से दूर है, उसे लोक-विरोधी अथवा लोक-निरपेक्ष कैसे कहा जा सकता है?

नामवर सिंह

वैदिक जीवन का जिस किसी भी बाह्य-पदार्थ से सम्बन्ध था, उसे वैदिक ऋचाओं में जीवन-आवश्यकता के अनुरूप सहज अभिव्यक्ति मिली है।

विजयदान देथा

सत्य तो शास्त्रों से मिल सकता है और शास्ताओं से। उसे पाने का द्वार तो स्वयं में ही है।

ओशो
  • संबंधित विषय : सच

धर्मग्रंथों का अंत ही नैतिकता की उत्पत्ति है।

इमैनुएल कांट

हमारे यहाँ माना गया है कि जब कोई शास्त्र या ग्रंथ कहे कि यह पंचम् वेद है, तो समझना चाहिए कि यह किसी परिवर्तन की सूचना है।

नामवर सिंह

मुझे वेदों में जो रुचि है, उसका कारण मठ नितांत नहीं है।

यू. आर. अनंतमूर्ति