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अंतर्विरोध पर उद्धरण

हमारा सारा सौंदर्य जिए हुए और सोचे हुए के बीच के दुखद अंतर्विरोध की छवि है।

ओउज़ अताय

सभी शास्त्रों का विरोध करने वाली प्रतिज्ञा सर्वागमविरोधिनी प्रतिज्ञा कहलाती है। यथा, शरीर पवित्र है, प्रमाण तीन हैं अथवा प्रमाण हैं ही नहीं।

भामह

अपने ही सिद्धांत का विरोध करने वाली प्रतिज्ञा—सिद्धांत विरोधिनी प्रतिज्ञा कहलाती है। यथा, कणाद-ऋषि कहें कि शब्द अविनश्वर (नित्य) है।

भामह

कुल-संबंध अस्थिर है, विद्या सदा ही विवादपूर्ण है, और धन क्षण में ही नष्ट हो जाने वाला है, अत: इन मोहजनक वस्तुओं पर अभिमान मिथ्या ही है।

क्षेमेंद्र