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स्वतंत्रता पर उद्धरण

आवश्यकताओं की निर्विरोध और निर्बंध पूर्ति ही मनुष्य जीवन की स्वतंत्रता है।

विजयदान देथा

जो प्रौढ़ और तजुर्बेकार हैं, वे ही स्वराज्य भुगत सकते हैं, कि बे-लगाम लोग।

महात्मा गांधी

नारी की आर्थिक परवशता और उसी स्वतंत्रता को विच्छिन करके देखना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है।

विजयदान देथा

हम दुनिया में किसी को दुश्मन बनाना नहीं चाहते और हम किसी के दुश्मन बनना चाहते हैं—यह मेरी व्याख्या का स्वराज्य है।

महात्मा गांधी

इच्छा को जहाँ अन्य इच्छा की चाह होती है, वहाँ इच्छा फिर स्वाधीन नहीं रह जाती।

रवींद्रनाथ टैगोर

यक़ीनन आधुनिक इतिहास में तो ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, जिसकी अंग्रेज़ों के सत्ता छोड़ने के काम से तुलना की जा सके।

महात्मा गांधी

हमारी जिस इच्छा में स्वाधीनता का सबसे विशुद्ध रूप होता है, उसी में अधीनता का भी विशुद्ध रूप होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

हिंदुस्तान के विभाजन ने बेजाने उसके दो हिस्सों को आपस में लड़ने का न्यौता दिया। दोनों हिस्सों को अलग-अलग स्वराज देना, आज़ादी के इस दान पर धब्बे जैसा मालूम होता है।

महात्मा गांधी

स्त्रियों को विवाह करना ही चाहिए—यह मिथ्या भ्रम है। उसे भी यावज्जीवन ब्रह्मचर्य पालने का अधिकार है।

महात्मा गांधी

अराजकता का इलाज स्वतंत्रता है कि दासता, वैसे ही जैसे अंधविश्वास का सच्चा इलाज नास्तिकता नहीं, धर्म है।

एडमंड बर्क

हम ख़ुद गुलाम होंगे और दूसरों को आजाद करने की बात करेंगे, तो वह संभव नहीं है।

महात्मा गांधी

लेखक की स्वतंत्रता तथा कलाकार की स्वतंत्रता; वस्तुतः अभिव्यक्ति के अधिकार की स्वतंत्रता है, किंतु यह स्वतत्रंता समाज-सापेक्ष और समाज-स्थिति-सापेक्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

वयः प्राप्त पुरुष जितनी स्वतंत्रता का अधिकारी है, उतनी ही स्त्री भी है।

महात्मा गांधी

अगर मैं कहूँ; मनुष्य मुक्ति चाहता है, तो यह मिथ्या बात होगी। मनुष्य मुक्ति की अपेक्षा बहुत सारी चीज़ें चाहता है। मनुष्य अधीन होना चाहता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

लड़ते हुए मर जाना जीत है, धर्म है। लड़ने से भागना पराधीनता है, दीनता है। शुद्ध क्षत्रियत्व के बिना शुद्ध स्वाधीनता असंभव है।

महात्मा गांधी

नारी जब अपनी उस स्वतंत्र स्थिति को प्राप्त कर लेगी तब एकनिष्ठता का दावा पुरुष के हिस्से में भी उसी अनुपात से आयेगा जितना नारी के लिए है।

विजयदान देथा

व्यक्ति-स्वातंत्र्य कला के लिए, विज्ञान के लिए—अत्यधिक आवश्यक और मूलभूत है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कला के स्वायत्त क्षेत्र का स्वातंत्र्य तभी सार्थक है, जब कलाकार में आंतरिक सम्पन्नता हो। ऐसी आंतरिक सम्पन्नता, जो वास्तविक जीवन-जगत् के संवेदनात्मक आभ्यंतरीकरण से उत्पन्न हुई है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

दूसरे लोग जो स्वराज्य दिला दें वह स्वराज्य नहीं है, बल्कि परराज्य है।

महात्मा गांधी

जिस प्रकार कला अपने आभ्यंतर नियमों के कठोर अनुशासन के बिना अपंग या विकृत होती है; अथवा अभाव बनकर रहती है, उसी प्रकार व्यक्ति-स्वातंत्र्य अपनी अंतरात्मा के कठोर नियमों के अनुशासन के बिना—निरर्थक और विकृत हो जाता है, खोखला हो जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जब व्यक्ति की स्वतंत्रता या शांति ख़तरे में हो, तब हम उदासीन नहीं रह सकते और ही हमें रहना चाहिए। तब तो निरपेक्षता एक तरह से उन बातों के साथ धोखा होगी, जिनके लिए हमने संघर्ष किया है और जो हमारे उसूल हैं।

जवाहरलाल नेहरू

आज़ाद हिंदुस्तान में सारे देश पर जनता का अधिकार है।

महात्मा गांधी

आज आज़ादी के ज़माने में तो यह पब्लिक का फ़र्ज़ हो जाता है कि गंदे अख़बारों को पढ़े, उनको फेंक दें।

महात्मा गांधी

हमारे देश में भी व्यक्ति-स्वातंत्र्य को साधना का विषय समझा गया था, लेकिन उस स्वातंत्र्य को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया गया।

रवींद्रनाथ टैगोर

जिन्होंने पश्चिम की शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गये हैं, वे ही गुलामी में घिरे हुए हैं।

महात्मा गांधी

अनुवाद में विश्वसनीयता और स्वतंत्रता, पारंपरिक तौर से परस्पर विरोधी प्रवृतियाँ मानी गई हैं।

वाल्टर बेंजामिन

भगवान के दर्शन तो स्वराज में ही हैं। भगवान का कोई शरीर थोड़ा है।

महात्मा गांधी

मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।

विजयदान देथा

जिस प्रकार स्वच्छंद समाज का स्वप्न अंग्रेज कवि शेली देखा करते थे, उसी प्रकार का यह समाज सूर ने चित्रित किया है।

नामवर सिंह

काफ़्का के यहाँ कोई मुक्ति है, छलांग, उड़ान, आसमान में खुलने वाला कोई प्रवेशद्वार।

पीएत्रो चिताती

अगर कोई अँग्रेज कहे कि देश को आजाद करना चाहिए, जुल्म के ख़िलाफ़ होना चाहिए और लोगों की सेवा करनी चाहिए, तो उस अँग्रेज को मैं हिन्दुस्तानी मानकर उसका स्वागत करूँगा।

महात्मा गांधी

हिन्द स्वराज्य की सच्ची ख़ुमारी उसी को हो सकती है, जो आत्मबल अनुभव करके शरीर बल से नहीं दबेगा और निडर रहेगा तथा सपने में भी तोप बल का उपयोग करने की बात नहीं सोचेगा।

महात्मा गांधी

उपनिषदों में कहा गया है कि “आत्मा से बढ़कर कोई चीज़ नहीं।” यह समझा गया होगा कि समाज में पायदारी गई है, इसलिए आदमी का दिमाग़ व्यक्तिगत पूर्णता का बराबर ध्यान किया करता था, और इसकी खोज में उसने आसमान और दिल के सबसे अंदरूनी कोनों को छान डाला।

जवाहरलाल नेहरू

उपनिषदों की रचना करने वालों में स्वतंत्रता के ख़याल के लिए बड़ा जोश था, और वे सब कुछ उसी रूप में देखना चाहते थे। स्वामी विवेकानंद इस पहलू पर हमेशा ज़ोर दिया करते थे।

जवाहरलाल नेहरू

रचनात्मक काम के बिना हम रह भी कैसे सकते हैं! उसके बग़ैर स्वराज चीज़ हो भी क्या सकती है?

महात्मा गांधी

मैं तो उस दिन आज़ादी मिली समझूँगा जब कि हिंदू और मुसलमानों के दिलों की सफ़ाई हो जाएगी।

महात्मा गांधी

सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं; बल्कि जब सत्ता का दुरूपयोग होता हो, तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है।

महात्मा गांधी

प्राकृतिक अनुकूलताएँ भी हों, उनमें स्वावलंबी रहना—दोष नहीं बल्कि उचित है।

महात्मा गांधी

व्यक्ति-स्वातंत्र्य एक आदर्श है और फिर भी वह मानव-गौरव की आधारभूत शिला है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

देश के लिए आवश्यक धान्य का संग्रह सदा रहे, स्वराज्य की आर्थिक नीति इस तरह बनाई जानी चाहिए।

महात्मा गांधी

व्यक्ति अपना स्वतंत्र निर्णय तब तक नहीं कर सकता, जब तक वह भीड़ का अंग है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हमारे जन्म-सिद्ध अधिकार की जो चीज़ है वह हमसे कोई छीन नहीं सकता।

महात्मा गांधी

स्वराज्य-प्राप्ति के लिए अस्पृश्यता को हटाने की बात गांधीजी की मौलिक देन थी।

वासुदेवशरण अग्रवाल

स्वातंत्र्य की सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए भी आत्मानुशासन पहली शर्त है।

कृष्ण बिहारी मिश्र

स्वराज्य तो सबको अपने लिए पाना चाहिए और सबको उसे अपना बनाना चाहिए।

महात्मा गांधी

मन केवल ऊर्जा-रूप में स्वतंत्र है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मेरा औद्योगीकरण तो देहातों में होगा, यानी घर-घर में चरखा चलेगा और गाँव-गाँव में कपड़ा तैयार होगा।

महात्मा गांधी

बाल-साहित्य बचपन का साहित्य होता है, उसके लिए साहित्य की स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं–बच्चे की स्वतंत्रता भी चाहिए।

कृष्ण कुमार

आज़ादी का मतलब होना चाहिए लोक-राज। लोक-राज का अर्थ है कि हर शख़्स को बुद्धि पाने का मौक़ा मिले।

महात्मा गांधी

शासन का भय घटता जाए और हम स्व-प्रेरणा से काम करने वाले नागरिक बन जाएँ।

यू. आर. अनंतमूर्ति
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